आपके बगैर यात्रा अधूरी ।
संगे संघठन से होगी पूरी ।।
आपके कदम मेरी चाल ।
सदे पगों की एक लय ताल ।।
फिर नहीं रहेगा संसय कोई
भावनाएँ नहीं रहेगी सोयी ।।
सातपाँच की लकड़ीयों से ।
बनेगा एक गठठा हम सबसे ।।
मैं नहीं हमारे का हो बोध ।
नहीं जागेगा कभी प्रतिशोध ।।
आओ मिलकर जतन करें ।
स्व नहीं पर हित का वरण करें ।।
@ बलबीर राणा "अडिग"
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