माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा
देना
हाथ उठा तिरंगा लहराके धीर उन्हें अपना बता देना जिसे देख रही तु चिर निंद्रा में ये माटी का पुतला है
तेरा लाल अभी भी सीमा पर खड़ा है, निगाह उठा जाना।
काल के पास भेज आया उनको काफ़िर बन जो आए थे
मेरी माँ के दामन में सेंध लगाने जो आए थे पर कुतर कुतर चीलों का निवाला बना गए उनके
ये, काश्मीर पर नजर रखने वालो को समझा देना
माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा देना।
नहीं होगा चीर हरण द्रोपदियों का, अब पांडव मूक
नही हैं
पांसों के जाल से छलने वाले, भरत पुत्र अब नहीं
हैं तोड़ रहे हैं, तोड़ते रहेंगे हर चक्रव्यूह काफिरों का वाणों से
काली के भेष में आकर माँ, दैंत्यों को ललकार देना
माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा देना।
कंचन निकला या पीतल, तेरा पूत ये तुझे जग बता
देगा
सीना ताने जय भारती जब, जनक मेरा गर्व से
गरजेगा हर जन्म तेरी कोख में जन्मूँ कोख पर अपनी मत रोना
शोक-संताप क्षोभ कर मेरी आत्मा मैली मत होने देना
माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा देना।
जब हो जवान गबरू वो बेटा, मेरा हेट पहना देना
लाल का लाल है तैयार, ये शकुनियों को चेता देना
माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा देना।
@ बलबीर राणा “अडिग’
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