क्षितिज के पार जहाँ और भी है
तारों से ऊपर आसमाँ और भी है,
मत समझ अभी को आखरी पड़ाव
तेरी हस्ती की मंजिलें आगे और भी है।
दर्द और सिकन बहुत है इस जहाँ में
टीस जो मिलने वाली आगे और भी है,
देखा है जो रंग ओ शबाब अब तक यहाँ
रंगीनियों से भरा चमन आगे और भी है।
मत घबरा ऐ दोस्त चंद रेतीले टीलों से
कोशों रेगिस्तान पार करना और भी है
ये तो एक छोटा इम्तिहां था जिंदगी का
मंजिल के लिए महासंग्राम और भी है।
लम्बे प्रेमालिंगन के बाद भी दिल टूटते देखे
चंद लम्हों में दिलदार बन बैठे और भी हैं,
खप जाती है उम्र इस इश्किया मिजाज समझने में
याद रहे बशंत के बाद तपती गर्मी का दौर भी है।
न कर गुमान हुस्ने जवानी का यूँ खुली सड़क में
कामदेवों की भरमार गली में और भी है,
ठिकाने बदलने वालों की नक़ल
महँगी पड़ेगी
उनके आशियाने तड़ी पार और भी है।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'
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