वही भूमी वही धरती
वही नक्श नजारे हैं
नहीं रहे तो, वे दिन
बचपन में हमने गुजारे हैं।
गांव मोहल्ला चौक चौबारे
खेत खलियान हमारा है
न रहा वो अल्हड़पन
जिसने सबको लुभाया हैं।
चाचा ताया भाई बहन
रिश्ते वे अब भी सब सारे हैं
नहीं रहा वो अपनापन
हमारे बचपन ने निभाये हैं।
स्कूल कालेज पाठशाला
खेल मैदान सब न्यारे हैं
न रहे वे खुशनुमा पल
जो हमारे बचपन ने बिताए हैं।
कुछ परिवेश बदला, बदली प्रवृति
कुछ बदलते समय का इशारा है
कोई लौटा दे फिर उस भोलेपन को
जिसने सबको भरमाया हैं।
*@ बलबीर राणा 'अडिग'*
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