शिव रात्रि के लिए हर परिवार तन मन धन से महीने दो महीने से तैयारी करते थे। मकान की साज सज्जा हो या घर में लूण तेल की व्यवस्था, परिवार के गार्जिन की प्रतिष्ठा मानो शिवरात्रि के त्योहार में सफल मेहमानबाजी पर निर्भर होती थी, क्योंकि शिव रात्रि पर्व पर पूरे बैरासकुण्ड क्षेत्र के हर परिवार में रिस्तेदारों के साथ उनके भी सगे संबधियों का जमवाड़ा होता है। नयें रिश्ते जोड़ना या यूं कहें कि इलाके में नयीं ब्वारी की खोज का पर्व ही शिवरात्रि का मेला था। लड़की या घर परिवार देखना इत्यादि सामाजिक परिवेश पर नयें रिश्तों की को-करार होती थी। तब हम बच्चों का उल्लास सायद आज की पीढ़ी को मयस्सर नहीं हो पायेगा, गारंटी से कहता हूं। छः महीने से गुच्छी और अंटी (कंची) से पैसे जमा करना, मकान पर पुताई के लिए कमेड़ा (सफेद मिट्टी) और लाल मिट्टी दूर के गांव से लाना, दरवाजों के लिए गोन्त (गोमूत्र) और चूल्हे की कीर से काला पेंट बनाना, घर आंगन की सफाई, राई पालक की क्यारी को पानी दे झक झक बनाना और मैले में क्या खरीदना और कौन रिश्तेदार आ रहा है और कितने रुपये देगा इस खुशी की संसद ख़्वाले ख़्वाले और स्कूल में चलती थी। शिवरात्रि की अगली रात को घर में सबसे बड़ा त्योहार होता अर्थात अच्छा खाना हलवा खीर इत्यादि खाने को मिलता था क्योंकि अगले दिन सभी का ब्रत होता था। शिव को फलाहार चढ़ाने तक तो हम बच्चे भी ब्रत रखते थे दाने सयाने शाम को भगवान शिव की डोली मठ से मंदिर आने के बाद ही अन्न जल ग्रहण करते थे। सुबह घर में फलाहार बनता था जिसमें तेडू स्पेशल बेराईटी के साथ पिंडालू (अर्बी), राजमा, मुंगरी और चुवे (मरसों) का बनता था। भगवान शिव को यह फलआहार बिना नमक मशाले के चढ़ता है, शिव को चढ़ने के बाद नमक मशाले से उसे लजीज बनाया जाता हैं जिसके चटकारे लोग कई दिनों तक लेते थे। शिव रात्रि के दिन सुबह से मंदिर में जलाभिषेक के लिए तांता लग जाता है मंदिर के चारों तरफ पंचदेव परिसरों में स्थानीय पंडितों की पीली धोती और लंबे टिका देखते ही बनता था, ऊपर मठ (मुख्य पुजारी निवास) से मंदिर में बिराजमान सभी देव थानों में पुजारी की आठों पहर पूजा का अपना ही महत्व होता है। परिसर में एक तरफ कीर्तन मंडली जम जाती अगले 24 घंटे के लिए। सिद्ध पीठ बैरासकुण्ड महादेव में शिवरात्रि महातम की सबसे खास बात है अंखड दिपक रखना, अखण्ड दिया निसंतान दम्पत्ति रखते हैं और लोगों का परम विश्वास आज भी है कि अखंड दिया रखने के बाद कोई भी दम्पत्ति आज तक निरास नहीं हुआ। इस प्रक्रिया में स्त्री 24 घंटे तक हाथ में जलता दिया रख तपस्या करती है बिना अन्न जल लिए यहां तक की 24 घंटे तक शरीर की जरूरी प्रक्रिया लघु या दीर्घ संका भी नहीं जाना होता है, मर्द जनानी की कुछ जरूरी मदद करता है जैसे मख्खी हटाना या नाक साफ करना कहीं पर खुजली करना इत्यादि, इस कठिन तपस्या का साहस अपने आप में दृढ़ मातृ शक्ति का द्योतक है। पट्टी मल्ला दशोली अब विकास खंड घाट में स्थित यह शिव स्थली नंदप्रयाग से 17 मील उत्तर में पंचजूनि पर्वत के तल पर लगभग 3 एकड़ समतल मैदान के बीच बना है। स्थान का भौगोलिक और मंदिर के ऐतिहासिक व पौराणिक पहलू को इस संस्मरण में उधृत नहीं कर पा रहा हूँ इस पर पूर्ण साक्ष्य के साथ बैरासकुण्ड महातम नाम से मेरी आने वाली किताब अभी अपूर्ण है शिव कृपा होगी तो एक आध साल में इसे में पाठको तक पहुंचा सकूंगा। हाँ तो मंदिर के विशाल मैदान में दो दिन तक मंदिर समिति के तत्वाधान में मैला चलता था जो आज भी सतत चलता है मेले में स्थानीय लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार की दुकाने लगाई जाती है, जिनमें बच्चों के खिलौने, महिलाओं के शृंगार के सामान और मिठाइयां प्रमुख होती थी। रात को धर्मशालाओं में बुजुर्ग महिलाओं द्वारा जागर बाहर मैदान में युवाओं द्वारा झुमैला चांचडी का अपना ही आनंद होता था, दिन भर मैले में बच्चों का कोतुहल बना रहता था। तब के दौर में हमारे क्षेत्र के लोगों के लिए इस मेले का महत्व वार्षिक उल्लास का था जो वर्तमान में औपचारिक सा प्रतीत होता है । संचार क्रांति के चलते अब मंदिर तक पक्की सड़क हो गयी आधुनिक भौतिक सुख सुविधायें पूर्ण उपलभद्द है अब मेले का स्वरूप भव्य और आधुनिक हो गया है हर वर्ष राज्य की कोई बड़ी हस्ती मेले का उदघाटन करने पहुंच जाते हैं अब मेला तीन दिन तक चलता है रात्रि में राज्य के बड़े कलककरों का द्वारा सांस्कृतिक प्रोग्राम होता है और दिन में जिला स्तरीय खेलों का आयोजन होता है जो कि क्षेत्र की तरक्की और युवाओं के शाररिक और बौद्धिक विकास के लिए शुभ संकेत है। उम्र के 18वें हेमंत में सेना में आने के बाद आज 24 वर्ष तक मेले में न जा पाना अखरता है इए लिये मेरी स्मृति में 80 और 90 के दौर का बैरासकुण्ड मेले का उल्लास आज भी वैसा का वैसा है, कहते हैं सावन के अंधे को हमेशा हरा भरा दिखता है।
@ बलबीर राणा "अडिग"
1 टिप्पणी:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मधुबाला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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