बुधवार, 15 अगस्त 2018

वतन पहरेदारों की जय बोल



जय बोलो जय हिन्द की वो सबके साझेदार हैं
जय बोलो उन वीरों की जो वतन के पहरेदार हैं

चैन की नींद वतन सौता है जिन बीरों के पहरे में
हर घड़ी के जागरण से भी सिकन नहीं चेहरों में
अमन गीत वो गाते फिरते काष्ठ के उस जीवन में
माँ माटी का तिलक लगाया खाते पीते यौवन में
मोह मात्र, उस क्षितिज की जिसके वे ठेकेदार हैं
जय बोलो उन बीरों की जो वतन के पहरेदार हैं।

देश खुशियों के खातिर जो खून की होली खेलते हैं
सरहद की अग्नि लपटों को सहज सीने पर झेलते हैं
युद्ध समर महायज्ञ में मृत्यु मंत्रों का जाप वो करते
बारूद समिधा की लो में होम अरि मुंडों का धरते
समग्र आहुती देते वे योद्धा तेज जिनकी धार हैं
जय बोलो उन वीरों की जो वतन के पहरेदार हैं।

शीत लहरों की ठिठुरन हो या तपता रेगिस्तान हो
मेघों की बौछारें हो या चीरता बर्फीला तूफान हो
कदम नहीं लखड़ाते जिनके धूल भरी आंधियों मैं
शेर ए हिन्द मस्त मोले रहते हिमखंडी वादियों में
दुर्गम उतुंग हिमालय चौकियों के वे चौकीदार हैं
जय बोलो उन बीरों की जो वतन के पहरेदार हैं।

पुकार त्राहिमाम पर संकट मोचन बन उढ़ आते हैं
अमोघ शास्त्र हैं आफत के झट प्रत्यंचा चढ़ जाते है
निज जीवन अभिलाषा उनकी टंगी रह जाती है
 नहीं पता कब देह इनकी तिरंगे पर लिपट जाती है
माँ भारती के इन तपस्वियों को नमन हजार बार है
जय बोलो उन वीरों की जो वतन के पहरेदार हैं।

रचना : बलबीर राणा "अडिग"

रविवार, 12 अगस्त 2018

उषा किरण


मुश्कान बिखेरती है वह झर-झर
किसलय कलियों के अधरों पर
आहिस्ता दस्तक दे रोशन दान से
चुपके चुम्बन करती कपोलों पर
अलसायी मृणांली देह संकुचाती
स्पर्श उसका आनन उरोजों पर
सरस सुरभि शीतल स्नेह लेकर
आयी है उषा किरण लाली भर कर
चिडया चूं चूं कर भोर वंदन करती
उषा किरण संग उर साधना जुट जाती
कंचन आभा सी चमकती ओश बूंद
दूर्वा शीश बैठ सबको लुभाती।

@ बलबीर राणा "अडिग"