गुरुवार, 27 जून 2013

रय्युं एक दग्ध



एक तरां नोनुकू कु बिब्लाट
हैका तरां गोरुं कु रम्डाट
कुकुरू पुच्छड़ी टांगो भीतर डाली उबरा बैठिगे
बिरालु डेरिल कुलाणा लुकिगे
यु बरखा नि जाण,
आज क्या करेली?
कत्गा जमेली, कत्गा उजाडेली,     
भैर.. बथों कु स्यूंस्याट,
सुपा खने, बरखा कु छिचडाट,
गाड गदिनियों मा भिभडाट,
बजर की चटम ताली कन्दुडा फुटीगे,
कुड़ी कु चवा हिलण लगिगे,
यु क्या?
आज!!!!!
इन्द्र द्यब्ता पाणी की बरखा नि!
बम की बरखा कण लगिगे,
क्या ये धरती बटी!!!
जीवन कु निशाण मिटण लगिगे?
हे पितरों, हे ! भुमियाल देवता !
क्वी त सूणा!!
क्वी त आवा!!  
पर! ~~~~~
वे दिन क्वी नि ऐनी, कैन नि सुणी,
सब शक्ति निरशक्ति ह्वेनी,
जनम बटी अडिग हमरु डांडू हिलण लगी...........
गिगडाट करी ढुंगा माटू दगडी बोगण लगी,  
देखा-देखी, कुड़ी-पुंगडी, डाला-बोटी, गों-ख्वाला,
गाड (नदी) मा समाधिस्त हुण लगी,
अफरा-तफरी, चों तरफा..
हाहाकार ~~~~~
परलय ऐनी,  
जुग-जुग बटी जग्वाली कुड़ी लोग छोडन लगिनी,
बुड्या ददा दादी कख गैनी,
कख च्वटा नोनियाल चलिगेनी,
ओडाल, दगडी ज्वानी मनखीयों की लांस बगेनी,
क्वी दबेनी, क्वी बगेनी
ये बरखा न कन निराशपंथ कैनी,     
हे ! राम~~~~~.......
कनि कोहराम मचीनी ............
हे आँखी तु किले नि फुटीन 
देखा देखी गों ग्वठियार रगड़ बणी ट्वेन किले देखीन....
ओ..हह ~~~~~भगवान ......    
आज क्या? रैगे यख....
जिंदगी का अवशेष मा गरुड रिटण लग्याँ,
देश विदेश बटी लोग तमासा देखण लग्याँ,
अब यु सुखा अंखियों मा आँसू नि रेनी,
द्विदिन मा खाणी कमाणी जिंदगी,
एक बीती कहानी बणीनी,
रय्युं एक दग्ध..... ~~~~~ बस दग्ध  

२७ जून २०१३
बलबीर राणा “भैजी”
 सर्वाध © सुरक्षित 

मंगलवार, 25 जून 2013

पर्वतराज तेरा कराल स्वरुप




युग-युग से तु अजर-अमर, युग-युग से अजेय रहा    
जटा-लता से लिपट अडिग, प्रांगन तेरा शुचित रहा  

सोम्य, शांत आँचल गिरिवर, अखंड तेरा वक्ष रहा
चिर समाधि में लीन यति, आशीष तेरा भारत पर रहा

जब मनुष्य इस युग का, स्वयं श्रृष्ठी निर्माता बन चला  
अखंडता तेरी विखंडन कर, अचल तन्द्रा विचल करने चला

विकाश के महल सजते गए, छेदन पर छेदन, तेरा होता गया   
दर-दर कोलाहल, कलिकाल का सुन, मौन तेरा भंग होता गया

मद के लोलुप विकाश दूत, मणीया तेरी लूटते रहे
मंच विनाश लीला का, तेरे मस्तक सजाते रहे

शक्ति क्षीण होती देख, तुझ नगपति का धैर्य खोता गया
रौद्र तेरा रुद्र, रूप बन, दूषित आँगन शुचित कर गया



पर्वतराज तेरा कराल स्वरुप,
अधर्म निर्लिप्तता से,
जग को जगा गया
आधुनिकता, खंडित जीवन अपना देख,
फिर तुझे समझने को बाध्य हुआ     

 

२४ जून २०१३
....... बलबीर राणा “भैजी”
 सर्वाध © सुरक्षित