रविवार, 26 नवंबर 2023

कुवाणी



यक़ीनन कुवाणी (कुवचन)

एक टॉकसिन है
जो निर्जीव वस्तु तक को
अपने बुरे प्रभाव बिना नहीं छोड़ता
फिर सजीव कहाँ बचेगा।

कुवाणी दो धारी तलवार है
जो दूसरे को तो काटता ही है
खुद को भी नहीं छोड़ता।

कुवाणी का फ्रंट ब्लास्ट इफेक्ट
जितना घातक होता है
उतना ही बैक ब्लास्ट
जिसकी जद में हम खुद होते हैं।

@ बलबीर राणा 'अडिग'

सोमवार, 20 नवंबर 2023

होनहार की औनार


जब भी बेटा छुट्टी में घर आता है, 

कुछ घर और कुछ वो बदल जाता है

उसको मैं कमजोर और बुढ्ढा दिखता हूँ,

मुझे वो पहले से समझदार नजर आता है 


उसकी माँ इसलिए भोली हो जाती सायद 

अब वो माँ के पास होने खाने की लगाता है

माँ समझ गई कि बेटे ने टहनी पकड़ ली

और वो खुद को चोटी तक समर्थ पाता है।


नहीं रहती हमें अब उससे कोई  शिकायत

वो हमारी कचर-पचर से नहीं बोराता है

कभी सुना भी देते हम कुछ गुस्से में तो

वो हाँ से हाँ मिलाता या मंद मुस्कराता है।


चेहरे पर झुर्रियाँ हमारी बढ़ रही हैं,

और कंधे वो अपने झुकता देखता है

पैंसे की चिंता मत करना मैं बोलता था कभी

अब वही बात घर से निकलते वो दोहराता है।


ऊँच-नीच भली-बुरी समझाने लग गया बेटा 

सायद घर की पूरी गठरी उठाना चाहता है

समय का चक्र अपनी जगह आता है अडिग

इसलिए एक दिन बेटा भी बाप बन जाता है।


औनार -शक्ल


©® बलबीर राणा 'अडिग'

मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023

नखरु


जला दिया गया है

नखरु का पुतला

पुतला जलाने को ही बनता है

असली तो ठहाका मार रहा है

देखो खुद के अंदर 

किसी न किसी

अमर्यादित चलन 

दुर्गण, विकृति रूप में 

जो जानता तो है 

लेकिन मानता नहीं

बाहर राममय

अंदर रावण से भी नखरु

सायद वो नखरुपन

उस विद्वान के

अंदर नहीं था।


नखरु - बुरा


©® बलबीर राणा 'अडिग'


अंदर अगर किसी रूप में रावण हो तो उसका दहन हो इसी कामना के साथ विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं मर्यादा पुरुष भगवान राम की कृपा बनी रहे।

जय सियाराम 🙏🙏🙏

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

वचन


उसके हिस्से की

खुशियों को भी सहेजना पड़ता है मुझे 

बॉर्डर पर 

कि जब कभी छुट्टी पर होऊँ 

तो हाथ बाँट लूँगा उसका 

रोटी-सब्जी

साग-भात

झाडू-पौछा

कपड़े छपोड़ना

बच्चों को तैयार करना

उगैरा उगैरा 

क्योंकि अकसर

उसके हर रोज  

एक ही काम की दिक

सुनाई देती है फोन पर।


मेरा भी एक ही जैसा काम है

दिन रात का 

बंदूक पकड़ ड्यूटी देना

जमीनी निशानों द्वारा चिन्हित 

काल्पनिक रेखा

के पार के लोगों पर नजर रखना

जो कोई उधर से रेखा लांघे

उस पर गोली चलाना 

पीटी करना

ताकि आगमी युद्ध के लिए फिट रहूँ

उगैरा उगैरा।


मुझे भी दिक होती होगी 

पर निकाल नहीं सकता

वचन बद्ध जो हूँ

वचन दिया है

बच्चों की माता को 

प्रेम करने का खुश रखने का

भारत माता को

दुश्मन के पग ना पड़ने देने का।


©® बलबीर राणा 'अडिग'

सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

योद्धा गाथा



प्रहरी हैं वे प्रखर प्रवीण, मानते नहीं कभी भी हार,
मर भूमि के सूरमाओं का, शूरत्व का नहीं पारावार, 
अनन्यहृत रहे देश मेरा, रहती सैनिक अभिलाषा है,
नाम नमक निशान पर मिटना, सैनिक की परिभाषा है।


असंभव को संभव करना, जिनकी फितरत में होता,
आदेश जिनके अराध्य हों, फिर कैसे कुछ असाध्य होता,
अगम दुर्गम सरजमीं पे जो, हर पहर निगहबानी करते हैं,
त्याग सर्मपण दृढ़ता से, हर लक्ष्य का भेदन करते हैं।


हो विषम विकट संताप हजार, हो गिरी श्रृंगों की शीत कटार,
हो छदम युद्ध की जटिलता, या हो तपता उखम मरु थार,
कँकाल क्लिफ रणभूमि में भी, अरि पर कहर बरपाते हैं, 
तिरंगा फहराने के संग-संग, तिरंगे में लिपटके भी आते हैं।


पौरुष ना उनका भय खाता, नहीं भयभीत पुरुषार्थ होता,
अरि अक्षि संधान पर भी, राष्ट्र रक्षार्थ प्राराब्ध ना छूटता,
गृहस्थ खेवनहार होते भी, समग्र साधना सन्यासी हैं,
हुतात्मा हैं मातरे वतन के, अटल अमिट अविनाशी हैं ।

विरह वेदना अपनों की, अधीर व्याकुल करती होगी,
संसारिक आमोद प्रमोद को, भावनाएं उमड़ती होगी,
पर गीता में हाथ रखकर, प्रण सौगंध जो लिया होता,
परिणीता प्रणय से पहले, प्रणय भारत माता से होता।

हर समय तत्पर रहते, दुश्मन का दर्प मिटाने को,
संकुचाते नहीं ये वर्दी वाले, बली वेदी चढ़ जाने को,
जय घोष जय भारत चिंघाड़ते, रिपु माथे चढ़ जाते हैं
जब भी मिले विराम समर में, वन्दे मातरम गाते हैं।



©® बलबीर राणा 'अडिग'












रविवार, 1 अक्तूबर 2023

हाथ बांधो मत बढ़ाया करो


हाथ बांधो मत बढ़ाया करो,
श्रद्धा से कुछ चढ़ाया करो।

जिगर में जान होनी चाहिए,
फिर जो चाहो मढ़ाया करो।

श्री गणेश तो करो श्री मिलेगी
यूँ श्रीमान से न कतराया करो।

उन्नीस-बीस चलता है पर,
सौ का सौ न पचाया करो ।

बात करनी है तो सुल्टी करो,
उल्टी पट्टी न पढ़ाया करो।

प्रशंसा उतनी अच्छी जितना है
चने के झाड़ में न चढ़ाया करो।

©® बलबीर राणा 'अडिग'

शनिवार, 16 सितंबर 2023

वक्त मिला नहीं अकसर बहाना होता



वक्त मिला नहीं अकसर बहाना होता,
वक्त का आना-जाना तो रोजाना होता।

वक्त नहीं करता किसी का इंतजार,
पकड़ो तो याराना, छोड़ो तो वेगाना होता।

नहीं होती भेंट अकल और उमर की,
एक का आना तो, एक का जाना होता।

दिललगी करो, दिललगी होनी चाहिए,
हाँ दिललगी को दिल से निभाना होता।

कुछ चेहरे होते हैं मन मोहने वाले, पर
चेहरों पे मर-मिट जाना बचकाना होता।

नजाकत देख ही गुफ़्तगू करना अच्छा,
हर मौसम नहीं सबको सुहाना होता।

पर्वत झरने नीड़ नदियां हैं जितने मोहक,
इस मोहकता को झंझावतों से लड़ना होता।

जरा संभल के और पूरा डट के अडिग,
वक्त को वक्त से वक्त पर उठाना होता।

@ बलबीर राणा 'अडिग'
चमोली उत्तराखंड

शनिवार, 9 सितंबर 2023

शिक्षित क्या हुए कि घरानों में बंट गए,



शिक्षित क्या हुए कि घरानों में बंट गए,
एक छत वाले अलग मकानों में बंट गए।

विकास में यूँ उड़े गाँव के तमाम पक्षियां,
शहरों को गये और विरानों में बंट गए।

जब चूजे थे एक घोंसले में चहकते थे,
बड़े क्या हुए कि बियाबानों में बंट गए।

जब तक कुंवारे थे घुघते साथ चुगते थे,
घुघती आई कि, अंदर खानों में बंट गए।

ईमानदारी से भौंक रहे थे कुत्ते गलियों में,
हड्डी मिली कि सारे बेईमानों में बंट गए।

कल तक सारी बस्ती एकजुट थी अडिग,
चुनाव आया, नेताओं की जुबानों में बंट गए।

बियाबान - जंगल
घुघता - पहाड़ी पक्षी

@ बलबीर राणा 'अडिग'

शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

गजल



मान लो तो परेशानी होगी,

ठान लो तो आसानी होगी।


तिल का ताड़ बनाओगे तो,

शांत लहरें भी तूफ़ानी होगी।


व्यवहार में यूँ वेरुखी रखोगे तो,

जानी सूरत भी अनजानी होगी।


देव-धर्म मौ-मदद से दूर रहे अगर,

जब अपनी पर आये हैरानी होगी।


लगाम न लगी किशोरवय पर तो 

फिर सामने-सामने मनमानी होगी।


बिना मतलब कोई धुर्र न बोले अडिग, 

मतलब को इज्जत जानी-मानी होगी।


धुर्र - दुत्कार 


@ बलबीर राणा 'अडिग'

ग्वाड़ मटई बैरासकुण्ड चमोली 


शनिवार, 2 सितंबर 2023

गजल



कभी नहीं छूटता चलने को,

संघर्ष जीवन से निकलने को।


सुरज इस लिए रोज बुझता है,

फिर एक नईं सुबह जलने को।


वक्त चलायमान रुकता कहाँ, 

वक्त होता ही है गुजरने को।


लगे रह हैरान परेशान न हो,

तू आया ही है कुछ करने को।


संजो समय को सामर्थ्य से,

सामर्थ्य होता ही संवरने को।


कर्म का नाम ही जीवन अडिग,

कर्म बिन जीवन न निखरने को। 


@ बलबीर राणा 'अडिग'

गजल



पाने के लिए ख्वाहिश होनी चाहिए,
मिल जायेगा कोशिश होनी चाहिए।

ख़्वाब देखने की मनाही नहीं परन्तु,
पूरा करने को आजमाइश होनी चाहिए।

हाथ पकड़ लेंगे पकड़ने वाले चाहोगे तो,
हाथ पकड़ाने की गुजारिश होनी चाहिए।

फौलादी इरादे, बुलंद होंसले सब कुछ हैं,
मगर मंजिल की महा कोसिस होनी चाहिए।

कितना ज्ञानवान गुणवान क्यों नहीं आजकल,
पर फिर भी सिफारिस होनी चाहिए।

दिखती नहीं ईमानदारी इस जमाने में सहज़
ईमानदारी की भी नुमाइश होनी चाहए।

गर्जवानों की गर्ज में गरजके अडिग,
गरिमा की भी गुजारिश होनी चाहिए।

9 अगस्त 2023
✍️✍️✍️@ बलबीर राणा 'अडिग'

गजल



कभी नहीं छूटता चलने को,

संघर्ष जीवन से निकलने को।


सुरज इस लिए रोज बुझता है,

फिर एक नईं सुबह जलने को।


वक्त चलायमान रुकता कहाँ, 

वक्त होता ही है गुजरने को।


लगे रह हैरान परेशान न हो,

तू आया ही है कुछ करने को।


संजो समय को सामर्थ्य से,

सामर्थ्य होता ही संवरने को।


कर्म का नाम ही जीवन अडिग,

कर्म बिन जीवन न निखरने को। 


@ बलबीर राणा 'अडिग'

चाँद पर चार चाँद लगा दिया हमनें



दक्षिणी ध्रुव पे पाँव जमा दिया हमने,

चाँद पर चार चाँद लगा दिया हमने।


हम किसी से कम नहीं दुनियाँ वालो, 

चन्द्रमाँ पर तिरंगा फहरा दिया हमने।


जिन नक्षत्रों की गणना युगों पहले कर दी थी,

उन्हीं नक्षत्र का नयाँ नक्शा बना दिया हमने।


प्रतिभा में ना तब कम थे न आज हैं हम,

हम क्या हैं दुनियाँ को दिखा दिया हमने।


आत्मज्ञान विज्ञान सब में अग्रणीय रहे हम,

अंतरिक्ष में एक नयाँ इतिहास रच दिया हमने।


लग गए ताले रिपु बामियों के मुख पर,

कार्टून बनाने वालों को दिखा दिया हमने।


अडिग का नमन युग पुरुष वैज्ञानिकों को,

विश्वगुरु की राह कदम बड़वा दिया तुमने।


23 अगस्त 23

@ बलबीर राणा 'अडिग'

गौरव गीत : फेब फोट्रीन



जय हो बद्री विशाल, जय हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा करते रहेंगे, चाहे जैसा भी हो हाल।


त्याग समर्पण दृढ़ता पर, 

अडिग हैं हम हर हाल।  

असम्भव कहना सीखा नहीं,

भारत माता के हम हैं लाल।


माथा तेरा झुकेगा नहीं,  

चाहे लहू भरे तालाब।  

हमेशा डटे रहेंगे 

हर वक्त हर हाल।


जय हो बद्री विशाल…….


जोधपुर से सिक्किम चढ़े,  

पिथोरागढ़ से सियाचीन बढे।  

मेघदूत में प्रशंसा पाकर, 

मेरठ में और निखरे।


मणिपुर के जंगळों में,  

विद्रोहियों को धूल चटाया।

सी आई पहली विजय पर,

साईटेशन हमने पाया।


जय हो बद्री विशाल……


देहरादून के पीस में

खेलों में किया कमाल।  

नौसेरा एल सी पर,

हमने मचाया धमाल।


दुष्मन के घर में घुसकर, 

तांडव हमने मचाया।

पाकिस्तानियों को ढेर करके 

दुसरा साईटेशन कमाया ।


जय हो बद्री विशशाल……


ऑप पराक्रम सांबा में,

बुद्धी शक्ति हमने दिखाया,

बारूद लेंड माईनों का,

नयां इतिहास रचाया।


कटिहार फैजाबाद में,

ट्रेनिंग का लोहा मनवाया। 

विश्व शांति कांगो में,   

पल्टन ने कदम बढ़ाया।


जय हो बद्री विशाल…….


यू एन प्रशंसा लेकर,   

स्वदेश की ओर बढ़े,

नौगाम कश्मीर तरफ, 

पल्टन के कदम चढ़े। 


जटि की चोटियों पर,

मुजाहिदों को खूब ठोका, 

अजय तौमर की कृति ने, 

तिसरा साईटेशन दिलाया ।


जय हो बद्री विशाल……


गरुड़ ताज़ पहन के, 

रानीखेत के राजा बने,

पल्टन का करवां आगे, 

आसाम की तरफ चले।


ऑप स्नोलेर्पड में,

समर्थ सामर्थ्य सराहाया, 

पल्टन का झंडा फिर,

मेरठ पीस आया।


जय हो बद्री विशाल…..


पाईन डिवीजन में 

चैम्पियन का ताज़ सजा, 

गढ़वाली भुलाओं का 

हर तरफ डंका बजा।


दीपसांग ट्रेक, लेह में 

भुजबळ अब दिखाएंगे,

चुंग-फुंग चीनियों को 

दम-ख़म हम बताएँगे।


जय हो बद्री विशाल…..


अमन हो या युद्धकाल,

कर्मपथ पर अडिग रहे।

अजेय यात्रा हमारी,   

चारों दिशाओं में चलती रही।


अडिग नीव रखने वालो,

तुम्हें सत सत प्रणाम। 

खंडित नहीं हाने देंगे, 

कहता है पल्टन जवान।


जय हो बद्री विशाल, जय हो चौदह गढ़वाल।

तेरी सेवा करते रहेंगे, चाहे जैसा भी हो हाल।


@ बलबीर राणा अडिग 

बीर राणा  ‘अडिग’*  

शनिवार, 12 अगस्त 2023

तात-मात का पात बनना जी



ये सुदृढ़ सक्षम तात-मात 

जिस दिन बूढ़ा जाएंगे,

सब तरफ से असक्षम बन 

खुद से खुद में न रह पाएंगे।


पले बड़े जिन बट बृक्षों की छाँव 

उन बटों को मत भूलना जी,

अपने यौवन उन्माद में उन्हें 

निराश्रय मत होने देना जी ।


संसार में आने पर जैसे 

मनुज सहारे पर होता है,

और संसार से जाने को 

फिर सहारे पर आता है।


तब तुम अपने सहारों का 

सुदृढ़ सहारा बनना जी,

जैसे संभाल तुम्हारी हुई थी 

वैसे ही संभाल करना जी।


बाहर से जर्जर, अंदर ढोर  

प्रकृति प्रवृत हो जाएंगे, 

कपड़े पर टंगा डम्मी सा 

मात्र आकृति रह जाएंगे।


तब तुम उन आकृतियों पर 

प्रेम से वस्त्र पहनाना जी,

अपने आमोद से दो पल निकाल 

उन जरठों से बतियाना जी।


चेहरे पर होंगी झुरियां बलय

आँखें गुफा सी हो जाएंगी,

दाँत मुँह का साथ छोड़ चुके होंगे

गाल गड्डे मात्र रह जाएंगे।


तब तुम उनकी झुरियों बलय से 

मैल रेसौं को धोना जी,

सर चेहरे के बिखरे बालों की

साज संवार करना जी।


कान पड़ जायेंगे बंद बहरे

बातें नहीं सुन पायेंगे,

तुम्हारी गपशप चुहल को 

अपनी उपेक्षा समझेंगे।


तब तुम उनके पोती-पोतों से 

कान में जाकर बुलवाना जी,

उनके अतीत की बातें करके 

मन उनका बढ़ाना जी।


बिना बात की बातों पर

जरठ खुद में बड़बड़ायेंगे, 

लाख समझाने पर भी

अपनी ही लगायेंगे।


तब तुम थोड़ा धीरज रखकर

उनकी हाँ में हाँ मिलाना जी,

ताव में बृद्ध आमात्यों को 

अपशब्द मत कहना जी।


शरीर में रहेगी कमजोरी कंपन

कभी हाथ से बर्तन छूटेगा,

मुँह तक हाथ नहीं जा सकेगा कभी 

कोर बाहर ही बिखर जाएगा।


तब तुम अपने हाथ से

कोर मुँह में डालना जी,

प्रकृति नियम दोहराव है यह 

तात-मात का तात बनना जी।


मनुज इस संसार में 

दो बार अबोध बालक बनता है,

जब वह आता है 

और जब जाने को होता है।


सत्य नियम प्रकृति प्रदत्त है 

लकड़ी जल कर पीछे आती है,

आज के सत कर्मों की पूँजी

कल व्यर्थ नहीं जाती है।


अगर पुण्य कामना जीवन में

पितृ सेवा जीते जी कर लेना जी,

मरने के बाद रीती रस्मों के 

भरोसे बिल्कुल मत रहना जी। 


कटु जड़ सत्य, सच्च लिखना 

अडिग कलम का कर्म है जी, 

तात-मात सेवा से बड़कर

और न कोई सेवा धर्म है जी।



12 अगस्त 2023

✍️✍️✍️@ बलबीर राणा 'अडिग'

ग्वाड़ मटई, बैरासकुण्ड चमोली

मंगलवार, 8 अगस्त 2023

अंतहीन : गीत

 

आज पुरुवाई संग एक कहानी आई,

खुशबु वो कुछ-कुछ पुरानी आई।

अंतस देखने लगा उस दुनियां को, 

जब थी लड़कपन की रवानी पाई।


दिखता नहीं था भेळ भंगार कहीं,

चलते थे पाँव ये कहीं के कहीं।

कहीं फाळ, कहीं कच्चाक लगती थी,

माँ कंडाली से फिर स्वागत करती थी।


आज वे कंडाळी के दमळे रुलाने आई,

खुशबु वो कुछ कुछ पुरानी आई।


डगर कहीं, नजर कहीं रहती थी,

ककड़ी के झ्यालों पर आँख टिकती थी।

बस्ते भर-भर नारंगी भकोरना था,

गालियों से मन नहीं झकझोरना था।


आज फिर वो गालियाँ डराने आई

खुशबु वो कुछ कुछ पुरानी आई।


स्कूल न जाने का अजीब बहाना था,

जाकर गदेरों में नहाना जो था। 

पीरियड गोल करना भी रौब  होता, 

गुरुजी के डंडे का खूब खौफ  होता।


आज डंडों का फंडा मन भाने आई,

खुशबु वो कुछ कुछ पुरानी आई। 


गुच्छी खेले बिना कहाँ ठौर था, 

मजा गुल्ली डंडे का कुछ और था। 

झड़प झापड़ मुक्का मुक्की चलती थी,

बिछुड़ते प्रेम भुक्की नहीं छूटती थी।


गजब दोस्ती की अजब कारिस्तानी आई,

खुशबु वो कुछ कुछ पुरानी आई।


वो बचपना आज कहीं खो गया,

बस्तों के नीचे दबा लिया लगा।

कंप्यूटर मोबाईल लत चाटने लगा, 

बाल मन डिजिटल डाटा कब्ज़ाने लगा ।


नोनीहालों का हाल ये दुखानी आई,

विकास अंधड़ उड़ाने आई।


चंचलता ये कैसी जद में आने लगी,

बच्चों की सरारतें सुस्ताने लगी। 

कोई नहीं जान रहा बाल मन की थाह,

बस प्रसंटेज की प्रसंशा भुनाने आई।

आज पुरवाई संग एक कहानी आई।



@ बलबीर राणा 'अडिग'

शनिवार, 5 अगस्त 2023

शिक्षा एक चिंतन

 *कुछ यक्ष प्रश्न व कटु सत्य : शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षा तंत्र*  अडिग कलम से ✍️✍️✍️

क्या आज हमारी शिक्षा व्यवस्था, शिक्षण संस्थान और शिक्षक भारतीय मनीषा बनाये रखने व सुसभ्य समाज के निर्माण में सक्षम है?????

व्यक्तियों के समूह से समाज और समाज संचालन के लिए एक तंत्र की जरुरत होती है जो समाज, राज्य व राष्ट्र की रीती नीति का निर्धारण करता है, और उसे जमीनी क्रियान्वयन कराता है, नीति अनुरूप क्रियान्वयन ही किसी राष्ट्र को महान राष्ट्र बनाता है। लेकिन जब तंत्र की नीव पर ही दीमक लग जाए तो राष्ट्रभवन खड़ा रहने की कोई गारंटी नहीं।

राष्ट्र अखंडता की नीव रूपी तंत्र में शिक्षा तंत्र एक अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग होता है, इस अंग पर लगी व्याधियाँ सम्पूर्ण राष्ट्र को ही व्याधिग्रस्त बना देता है।  प्रस्तुत आलेख में उधृत मुद्दे शिक्षा तंत्र के साथ सभी राष्ट्रवासियों और नीति नियंताओं से सम्बंध रखते हैं, क्योंकि देश का हर नागरिक राष्ट्र के उथान और पतन दोनों का कारक होता हैं, किसी एक नहीं सभी के माथे पर राष्ट्र का नाम अंकित होता है, भारत मुझ से नहीं हम से बना है। 

फिर भी ये बातें मेरे चरित्र पर बतौर एक शिक्षक, एक नागरिक सही बैठती है तो यह संयोग नहीं पूरा प्रयोग है और मुझे खुद में सुधार करते हुए एक अच्छे भारतीय एवं भारतीयता के निर्माण में योगदान शुरू कर देना चाहिए।

कुछ मुद्दे, प्रश्चिह्न 👇 जो हमारी शिक्षा के मूल पर लगा धिवाड़ा (दिमक) है जिससे मानवीयता और भारतीयता दोनों की जड़ खोखली हो रही है। 

यदि आध्यापक चरित्रवान, संस्कारवान, ज्ञानी होंगे तो जरुरी है विद्यार्थी भी ऐसे निकलेंगे, और जब हर विद्यार्थी चरित्रवान, संस्कारवान, कर्मप्रधान होगा तो भारत को फिर से विश्वगुरु होने से कोई रोक नहीं सकता। 

लेकिन ऐसा होना संभव नहीं लग रहा है।

*क्योंकि*

जिस देश में शिक्षा का पूर्णरूपेण व्यवसायीकरण हो चुका हो।

*क्योंकि*

अब भारत में निस्वार्थ गुरुकुलों से शिक्षा नहीं दी जाती, जहाँ से चरित्रवान, संस्कारवान कर्मप्रधान अध्यापक ही नहीं बल्कि नागरिक पैदा होता था।

*क्योंकि*

अब भारत में आचार्यकुलम नहीं किसी माफिया, भ्रष्ट राजनेता, अधिकारी के काले धन को सफ़ेद करने के लिए खोले गए एकेडमी व एजुकेशन इंस्टिट्यूट फलीभूत होते हैं, और मजे की बात यक कि इन एकेडमी और इंस्टिट्यूट में अध्यापक के चयन हेतु इंटरव्यू इनके नराधाम मालिक ही लेते हैं, चयन करते हैं। 

*क्योंकि* 

आज मोटी फीस पर चल रहे प्राईवेट शिक्षण संस्थानों में मानव नहीं मशीनों का निर्माण होता है। जहाँ दौड़ चारित्रिक विकास पर नहीं केवल प्रसंटेज पर है। 

*क्योंकि*

आज हम अध्यापक नहीं टीचर हैं और टीचर केवल टेक्निक सिखाता है, तकनिकी नैतिकता नहीं जानती वह चरित्र एवं व्यक्तित्व निर्माण नहीं कर सकती बल्कि केवल काम आसान करना, बनाना सिखाती है। उच्च व्यक्तित्व के लिए तकनिकी ज्ञान के साथ चारित्रिक ज्ञान जरुरी है। 

*क्योंकि*

आज के टीचर किताब का एक एक अक्षर ज्ञान स्वरूप देते नहीं पैसों में बेचते हैं। 

*क्योंकि*

काबिल व्यक्ति को सरकार सरकारी अध्यापक बनाती है लेकिन सरकारी अध्यापक का रिजल्ट जमीन सार्वजनिक है।


*क्योंकि*

क्योंकि भारत में सरकारी नौकरियां खैरात मानी जाती है। 

*क्योंकि*

सरकारी अध्यापक का बेटा प्राईवेट में पढ़ता है, उसे खुद अपनी शिक्षा व शिक्षा पद्द्ति पर विश्वास नहीं कि वह अपने बेटे को एक काबिल इंशान बना सके। 


*क्योंकि*

आधुनिकता की अंधी दौड़ ने नैतिकता और चरित्र का हनन कर दिया, जिसके चलते लंपटबाजी बुरी नहीं मानी जाती चाहे विद्यार्थी हो या शिक्षक। 


*क्योंकि*

हम पश्चात्य की दौड़ व होड़ में पीछे न रह जाएं की मानसिकता के चलते विद्यालय में असभ्य वस्त्र पहनना फ़ैशन जो मान लिया जा रहा है।


*क्योंकि*

इस दौर के ट्यूटर टीचर समय समाप्त हो जाने पर सवाल आधे में छोड़कर कल पर टाल जाते हैं, जबकि बच्चा उसी समय सवाल को पूरा जानने की जिज्ञासा रखता है, बच्चे की आज वाली सक्रीय मानसिक दशा वो टीचर कल कहाँ से लाएगा.


*क्योंकि*

उस बच्चे के उपर क्लास में इस लिए ध्यान नहीं दिया जाता कि वो बच्चा उस टीचर के पास ट्यूशन नहीं पढता।


*क्योंकि* 

आरक्षण ने अयोग्य व्यक्तियों को शिक्षण संस्थानों पर थोप दिया हैं व तुष्टिकरण की राजनीती ने भ्रष्ट व्यक्ति को नीतिकार बना दिया है। 


*क्योंकि*

हमारे शिक्षण संस्थानों में *मातृभाषा बोलना और सिखाना* हीनता व असभ्य माना जाता हो। और बिना मातृभाषा के मनुष्य उथान संभव नहीं । 


*क्योंकि*

भारत में शिशुमंदिर, विद्यामंदिर, संस्कृत विद्यालयों में बच्चे को पढ़ाना दकियानुशी, पिछड़ा माना जाता है, जहाँ भारतीय दर्शन, सनातन मनीषा व नैतिक जिम्मेवार भारतवंशी का निर्माण होता था और होता है।


*क्योंकि*

हमने संस्कृत जैसी वैज्ञानिक भाषा को ताज्य कर अंग्रेजी को अपना जीवन आधार मान लिया है, भाषा सीखना गलत नहीं लेकिन उस भाषा से जनित कुसंस्कारों का भोगी होना गलत ही नहीं राष्ट्र के लिए हानिकारक है। 


*क्योंकि* 

भारत में आज भी मैकाले की शिक्षा व्यवस्था चल रही है या उसी का अनुशरण किया जा रहा है, जिसे केवल भारत को तौड़ने के लिए बनाया गया था,


*क्योंकि*

मैकाले की इस शिक्षा पद्द्ति वाले तंत्र में क्वालिटी नहीं क्वांटीटी का विकास होता है।


*क्योंकि*

आज की शिक्षा व्यवस्था में चरित्र निर्माण नहीं विचित्रता निर्माण हो जा रहा है जैसे उच्चश्रृंखलता, उदंडता, अनुशासहीनता, असहिष्सुणता, निर्दयता, वाकपटुता की जगह मुंहफट बेशर्मता इत्यादि कुलक्षणी आदतें व्यवहार। 


*क्योंकि*

अभिव्यक्ति की आजादी के नाम से उच्च शिक्षा केंद्र को राष्ट्रद्रोही एवं कलुषित राजनीती का केंद्र बनाया जा रहा है और स्वघोषित उद्दार कुलीन शिक्षक वर्ग राष्ट्र को गलत इतिहास परोसता है।


*क्योंकि इस शिक्षा व्यवस्था में तत्वज्ञान,  आत्मज्ञान एवं मनुष्य अंतःकरण शुद्धि की कोई व्यवस्था नहीं है। 


*अगर होती तो!!!* :-


संताने ऐसी असंवेदनशील पैदा नहीं होती, जो छोटी सी बात पर हिंसक होना या आत्महत्या जैसे जघन्य कदम न उठाते। 


*होती तो :-*

संताने किशोरवय में नशे और अय्यासी का शिकार नहीं बनते।


*होती तो :-*

संताने व्यवसाय पर लगते ही माँ  बाप को दूध की मखी जैसे जीवन से निकाल नहीं फेंकते।

*होती तो*

आज सुव्यवस्थित, सभ्य, अनुशासित संयुक्त भारतीय पारिवारिक व्यवस्था का विलोपन नहीं होता।

*होती तो :-*

बच्चे अपनी मातृभाषा, संस्कृति व संस्कारों से बिमुख नहीं होते । 

*होती तो :-*

बच्चे सहनशील बनते, अपने माँ  बाप, अध्यापकों पर हमला नहीं करते, या उनकी एक छोटी सी डांट या दंड पर मजमा खड़ा नहीं करते।

*होती तो*

हमारी कार्यप्रणालियों में सुचिता होती, एक दुसरे पर भरोसा होता, हर नैतिक काम को उपर की आमदानी से नहीं जोड़ते.

*होती तो*

कोई विधर्मी यूँ मार काट नहीं मचाते, शास्त्र और शस्त्र का अनुपालन होता, बुझदिल सक्यूलर पैदा नहीं होते। 

इस सबके लिए शिक्षक, शिक्षण संस्थान ही नहीं हमारा पूरा तंत्र और हम सब जिम्मेवार हैं , जिन्होंने शिक्षा को केवल व्यवसाय या जरुरत तक ही अनुपालित किया, समाज, राष्ट्रहित या आदर्श जीवन मुल्यों के लिए नहीं। 

जय हिन्द, जय भारत

बंदेमातरम 

आलेख  © बलबीर राणा 'अडिग'

शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

गजल


बस्ती में ईमानदार कोई तो मिले, 

छुवीयूँ का साझेदार कोई तो मिले।


कौन करता विश्वास पर काम अब, 

तोता सिंह ठेकेदार कोई तो मिले।


रिश्ते भी मतलब के मोहरे बन गए, 

मतलब बिन नातेदार कोई तो मिले।


गलेदार भर गए गली मोहल्लों में, 

सच्चा सौदेदार कोई तो मिले।


चेहरे पे चेहरा चढ़ाए घूम रहे छोटे बड़े,

मुखड़ा बिन नकाबदार कोई तो मिले।


नकली माल-ताळ, चाल-ढाल चारों ओर,  

अडिग मौळयाण मालदार कोई तो मिले।


शब्दार्थ :-


छुवीयूँ - बातों 

गलेदार -झूठ की बुनियाद का सौदागर

मौळयाण - मूल स्रोत


@ बलबीर राणा 'अडिग'

सोमवार, 17 जुलाई 2023

पर्वत गीत




वे नहीं समझते पर्वत को 

जो दूर से पर्वत निहारते हैं,

वे नहीं जानते पहाड़ों को

जो पहाड़ पर्यटन मानते हैं। 


पर्वत को समझना है तो 

पहाड़ी बनकर रहना होता,

पहाड़ के पहाड़ी जीवन को 

काष्ठ देह धारण करना होता।


जो ये चट्टाने हिमशिखर

दूर से मन को भा रही, 

ये जंगल झरने और नदियाँ  

तस्वीरों में लुभा रही, 

मिजाज इनके समझने को 

शीत तुषार को सहना होता।


पर्वत को समझना है तो......


इन वन सघनों की हरियाली  

जितना मन बहलाती है,

गाड़ गदनों की कल-कल छल-छल

जितना मन को भाती हैं,

मर्म इनके जानने हैं तो 

उकाळ उंदार नापना होता।


पर्वत को समझना है तो ......


सुंदर गाँव पहाड़ों के ये 

जितने मोहक लगते हैं, 

सीढ़ीनुमा डोखरे-पुंगड़े 

जितने मनभावन दिखते हैं, 

इस मन मोहकता को 

स्वेद सावन सा बरसाना होता।


पर्वत को समझना है तो ......


नहीं माप पहाड़ियों के श्रम का

जिससे ये धरा रूपवान बनी,

नहीं मापनी उन काष्ठ कर्मों की

जिससे ये भूमि जीवोपार्जक बनी,

इस जीवट जिजीविषा के लिए

जिद्दी जद्दोहद से जुतना होता।


पर्वत को समझना है तो ......


मात्र विहार, श्रृंगार रचने

पहाड़ों को ना आओ ज़ी,

केवल फोटो सेल्फी रिलों में 

पर्वतों को ना गावो ज़ी,

इन जंगलों के मंगल गान को 

गौरा देवी बनकर लड़ना होता।


पर्वत को समझना है तो ......


दूरबीनों से पहाड़ को पढ़ना

इतना आसान नहीं,

इस विटप में जीवन गढ़ना

सैलानियों का काम नहीं,

चल चरित्रों के अभिनय से आगे

पंडित नैन सिंह सा नापना होता। 


पर्वत को समझना है तो 

पहाड़ी बनकर रहना होता,

पहाड़ के पहाड़ी जीवन को 

काष्ठ देह धारण करना होता।


शब्दार्थ :-


गाड़ गादने - नदी  नाले

उकाळ उंदार - चढ़ाई उतराई

डोखरे पुंगड़े - खेत खलिहान


चिपको प्रेणता *गौरा दीदी* और महान हिमालय सर्वेरियर *पंडित नैन सिंह रावत* को समर्पित। 


@ बलबीर राणा 'अडिग'

मटई बैरासकुण्ड चमोली 





रविवार, 9 जुलाई 2023

गजल

 


कहीं उधड़न, कुछ की तुलपन है,
हर किसी की अपनी उलझन है।

सुख दुःखों की समवेत कुटयारी यह,
जीवन कभी वीरान कभी गुलशन है।

घाम बर्खा शीत सबके अपने मिजाज,
सदैव न रहता मधुमास सा उपवन है।

सूदों भाताक खाते रहते संपदा को,
यह छूटने वाली केंचुली है उतरन है।

टपकते छप्पर के अंदर सिमटते हैं जो,
पुंगड़ों में श्रम उसी का नाचता सावन है।

पेट घबळाट, कबळाट न करता अडिग,
मनखी यूँ न मारा फिरता धरा आँगन है।

**
कुटयारी - गठरी, भताक - धक्के
पुंगड़े -खेत, घबळाट- असहजता 
कबळाट-कबलाहट

@ बलबीर  राणा 'अडिग'

रविवार, 11 जून 2023

गजल



आज अगर बातों को यूँ टाले जाओगे,

कल अपने ही घर से निकाले जाओगे।


ना बचा सकोगे इज्जत ना ही आबरु,

अगर मुँह पर यूँ ही ताले जाड़ाओगे।


खतेंगे सबके तिमले और नंगे भी दिखेंगे,

अगर केवल चुपचाप कनसुणी लगाओगे।


दे दिया कब्ज़ा सब छोटे बड़े धन्धों का, 

तुम केवल आरक्षण पर पाले जाओगे। 


अभी तो जेहाद लेंड लव तक ही पहुँचा,

कल कलमा कलाम के लिए ढाले जाओगे।


जगना नहीं जलाना है बिकराल ज्वाला बन,

चुप बुझे रहे तो कबरों में धकेले जाओगे।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

रविवार, 4 जून 2023

पशु और मनुष्य में फर्क

 

यह तस्वीर मेरे पास 2011 से है जब भी मेरे अंदर का मनुष्य भटकने की कोशिश करता में इस तस्वीर को देखता हूँ।

यह तस्वीर वर्तमान युग में मानव त्रासदी और विभित्सिका की सबसे क्रूर तस्वीर मानी  जाती है, इसे नाम  दिया गया  था 

The vulture and the little girl


इस तस्वीर में एक गिद्ध भूख से मर रही एक छोटी लड़की के मरने का इंतज़ार कर रहा है।

इस फोटो को 1993 में साउथ अफ्रीकन फोटो जर्नलिस्ट केविन कार्टर ने सूडान अकाल के समय शूट किया था। 

और इस तस्वीर पर उन्हें पुलित्जर पुरस्का



से सम्मानित भी किया गया था।

लेकिन इस सम्मान के कुछ  दिन बाद कार्टर ने आत्महत्या कर ली थी । 

कारण  क्या था? इतने बड़े और सम्मानित पत्रकार के आत्महत्या करने का ।

दरअसल यह फोटो दुनियां में खूब  वायरल  हुई, तस्वीर व सूडान अकाल पर विश्वभर में खूब चर्चा परिचर्चा  हुई, 

पुलित्जर पुरस्कार सम्मान के पश्चात एक इंटरव्यू में कार्टर को किसी पत्रकार द्वारा पूछा गया कि *उस लड़की का क्या हुआ?* तो कार्टर ने कहा था यह देखने के लिए मैं रुका नहीं क्योंकि मुझे फ्लाइट पकड़नी थी। 

इस पर इंटरव्यूइंग पत्रकार ने कहा आपको पता है उस दिन वहां दो गिद्ध थे।

कार्टर ने कहा मैंने एक ही देखा.

पत्रकार ने कहा मैंने दो गिद्ध देखे। 

एक गिद्ध जो लड़की  के मरने की इंतजार कर रहा था 

दुसरा

जिसके हाथ में कैमरा था।


*बस  क्या था इस बात ने*  कार्टर को इतना विचलित किया कि उसके अंदर का इन्शान उसे धिक्कारने लगा, जिससे वह अवसाद में चला गया और अंत में उसने ने आत्महत्या कर ली।


अगर उस दिन कार्टर तस्वीर लेने के बाद उस बच्ची को उठाकर किसी कुपोषण सेन्टर तक पहुँचा देता तो लड़की को जीवन दान मिल सकता था लेकिन प्रोफेशन  के नशे ने ऐसा नहीं होने दिया।


*सीख* 

अतः आप किसी भी प्रोफेशन में किसी भी पोज़िशन में क्यों न हो आपमें अगर मानवता नही तो आपका ओहदा पैंसा  रुतवा सब व्यर्थ है।

आपमें में मानवता नहीं है तो आप भी धरती पर उदर धीत हेतु परिश्रम करने वाले मात्र एक जीव हो। 

पशु और मनुष्य  में इतना ही फर्क होता ।


राम राम

जय  हिन्द 

*@ बलबीर  राणा 'अडिग'*

शुक्रवार, 5 मई 2023

पहली अनौपचारिक चिट्ठी



अरे हाँ याद है तुझे ? 

शिबू के हाथ जो 

पहली अनौपचारिक चिठ्ठी भैजी थी मैने 

और 

तूने भी तो हाथौं-हाथ प्रतिउत्तर दिया था ? 


तब वो चिठ्ठी वैसे की वैसे मिली थी मुझे 

जो तेरे कांपते हाथौं ने 

गोंद से चिपकाने के साथ 

खूब थूक से गीला किया हुआ था

जो मुझ तक पहुँचने पर भी गीला ही था। 


उस लिफाबे की चम्पत चिपकन 

प्रेम का राज 

किसी को पता ना चलने का यकीन रहा होगा तेरी तरफ से 

या 

मुझे अहसास कराना रहा होगा कि 

प्यार की पहली किरण फूटने के साथ 

पसीजा है यह थूक 

या 

अपनी जूठन भेजकर 

पक्का इरादा जता रही होगी 

एक होने का 

ख्वणी-ख्वणी, पता नहीं 


मैंने क्या लिखा होगा सही-सही याद तो नही मुझे 

पर हाँ 

आदतन बता सकता हूँ 

कि

पहले प्यार की कोमल नाजुक भावनाओं,

उत्साही उमंगों,

एवं 

हवा के संग आस-पास 

उड़ती प्रेम की रंगीन मंशाओं   

के वजाय

पकाने वाले जीवन सिद्धान्त

और 

देश समाज की डरती सहमती 

रीति नीति ही ज्यादा लिखी होगी मैंने 

जिन्हें तब से आजतक 

तू सुन रही है और 

मुझे बिंगा रही है 

कि 

छी ! अकल भी नि तुमू पर। 


हा हा हा 

हाँ यकीनन 

यही तो लिखा था तूने 

उस चम्पत चिपकाए 

बंद लिफाबे के अन्दर 

कॉपी के बीच से फाड़े पूरे एक तौ पर 

प्रेम पत्र के नाम 

यही 

एक वाक्या, एक बात 

छी! अकल भी नि तुमू पर। 


हाँ यार सच्च तो कहती है तू, 

कि 

मुझ पर अकल नहीं  

और सुन ! 

चाहिए भी नहीं मुझे दुनियां की तमाम अकल 

तेरी अकल के सिवा,

जिस अकल से मेरी गिरस्थी में

सुख और अमन का गुलिस्ता 

खिला रहता है सदानी हमेशा ।


@ बलबीर राणा ‘अडिग’

मंगलवार, 2 मई 2023

गजल


यूँ खामखाँ सूदों किसी को टोका न जाए,

करने दो, जो कर रहा है रोका न जाए।

 

हवा कब रुख बदल दे कहना है मुश्किल

औरों की पुरवाई पर फैसला लिया न जाए।

 

छुवीं ऐसी न लगे कि चिंगारी बडांग बने,

फिर पूरे गाँव को जद से बचाया न जाए।

 

वजह के लिए उलझना हो तो उलझो,

बेवजह फंसने के लिए उलझा न जाए।

 

अंदर ही पकाओ खिचड़ी कच्ची-पकी जो भी  है,

घर का रस्वाड़ा चौराहे पर चढ़ाया न जाए।

 

सीख रहे हो तो किनारे पर ही उतरो  

सीखने के लिए गहराई में कूदा न जाए। 

 

सुसल से सागर भी पार हो जाता है अडिग

कुसल का हल किसी को सुझाया न जाए।

 

गढ़वाली शब्दों का अर्थ

 

छुवीं – बातचीत

बडांग - बनाग्नि

रस्वाड़ा- रसोई

सुसल - अच्छी तरकीब ढंग

कुसल - खराब तरकीब

 

@ बलबीर राणा अडिग

गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

जिद्दी




प्रेमियों से

ज्यादा जिद्दी

धुन के पक्के 

इस धरा पर

और किसी को नहीं देखा।


निरा बहरे 

दुनियां की चुहल

चिल्लाहट भी

प्रेमगीत सुनाई पड़ता इन्हें ।


प्रेम पल्लवन के लिए 

सावन की रिमझिम

चाहते हैं सदैव

तभी तो

धरती का हर कौना 

हरा-भरा दिखता है

इन्हें 

सावन के अंधे की तरह।


जग्वाळ में बैठे प्रेमी

से जादा

कोई नहीं जानता

पल की गहराई 

प्रतीक्षा की लम्बाई

अंतहीन दिशाओं फैलाव 

आकाश के नीले का गाड़ापान ।



@ बलबीर राणा 'अडिग'

गुरुवार, 30 मार्च 2023

अडिग दोहे


अभाव में रखते  सब,  रघुनन्दन  का भान। 

भाव में जो भाव रखे, मनुज वही मतिमान।। 

 

नाम यशोधन जग फले, फले वैभव तमाम।

गरूर ग्रहण  ना लगे, रामा धन  तू मान।।


हरीतिमा मिले आंगन, सुकरम राह सुजान ।

चरे चाकरी कुपथ जो, करे चौपट  मचान ।। 


चले चटकी चालाकी, रखे जब  तक छुपाए।

चटख चटके चकड़ैती, राम दृष्टि ज्यूँ आए।।


प्रीति हो जब आफूँ से, वही राम  लग जाए।

आत्म प्रीत जग प्रीत है, यही राम को भाए।।


राम नाम सत नाम है, सत है राम विधान। 

और सब खंडित होवे, राम  सत्ता तू जान।।


प्रेम भूख  लागे अडिग, उदर  भूख हो गोण। 

सब तृष्णा से छक देवे, राम नाम की भौंण।।


शब्दार्थ :-

आफूँ - अपने से 

भौंण -  धुन

@ बलबीर राणा ‘अडिग’

रविवार, 12 मार्च 2023

समय


अपने हिस्से के
मुट्ठी भर मेवों से
तीन चौथाई बचा के
रखता था अजय
हर रोज 
ताकि छः आठ महिने में 
बन सके दो-चार किलो,


जब उसे छुट्टी मिलती 
ले जाता था 
पीठ में लाद 
रम की बोतलों के बीच छुपाकर घर,


माँ खुश-ख़ुशी 
पूरे गाँव में पेणु बाँटती थी 
लैंची चणों के साथ,
गाँव बाहें भरके
दुलार प्रेम आशीष देता था
सरहद पर
अपने अजय के विजय होने का, 
था एक समय, 

है एक समय 
अजय वैसे ही बचाता है 
अपने हिस्से के मेवों को
वैसे ही छुपाते लाता है घर
पर
अब ना माँ को पता चलता
ना ही गाँव को 
क्योंकि
आज का अजय
गाँव नहीं शहर में
रहता है. 


पेणु - शुभ अवसर पर घर-घरों बांटे जाने वाला मिठाई या पकवान.


@ बलबीर राणा 'अडिग'

https://adigshabdonkapehara.blogspot.com


मंगलवार, 7 मार्च 2023

होली आयी

 


पूरब से निकली किरण

अधरों पे मुस्कान लिए बोली

उठो अलस भगाओ, देखो बाहर

रंगों में रंग कर आयी होली।

 

अबीर गुलाल पिचकारी लेकर

खड़ी है हुलियारों की टोली

उल्लास बरस रहा है चहुँ ओर

बासंती फुहार लेकर आयी होली।

 

छोड़ो कल की बातें, गले मिलें

मेरा तेरा अब तक बहुत हो ली

मन का विश्वास दिलों में प्रेम

भाईचारा लेकर आयी होली।

 

रंगी है धरती रंगे हैं चौक चौबारे

सजी है बिलग रंगों की रंगोली

मधुमास है, पकड़ो प्रेम झर रहा है

आनंद की प्याली पिलाने आयी होली।

 

 @ बलबीर राणा अडिग

#https://adigshabdonkapehara.blogspot.com

बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

प्यार


प्यार को 
वैसे ही जाना है मैंने
जैसी
पंछी  ने आसमान
मछली  ने पानी को ।

वैसे ही
पकड़ के रखता हूँ इसे 
जैसे 
हरियल लकड़ी को ।

वैसे ही तरसता  
मचलता हूँ
जैसे 
चातक घटाओं को।

साफ स्वच्छ देखा है मैंने इसे 
कुहासे में बरखा की बूँद  सा 
धुंधले में धुला
कांच का वर्तन सा ।

फिर समझ पाया 
कि
अगर ये छूट गया तो 
टूट गया
फिर यह 
अनगिनत
नुकीले व धारदार
शूलों में बदल जायेगा
और फिर 
चुभता रहेगा जिगर पर 
काटता रहेगा शरीर को
जीवन भर ।

इसलिए
हर पल, हर घड़ी
संभाल के रखता हूँ 
कहीं छूट ना जाए
टूट ना जाए
यह प्यार।

8 फ़रवरी 23

#अडिगशब्दोंकापेहारा

@ बलबीर  राणा 'अडिग'

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

अडिग वचन

 


1.

भ्रम  होना ही

गलत  होना है

इसलिए

मत  मिथ्या में  रहो 

कि

मैं  उम्रदराज हूँ

गलत नहीं हो सकता।


2.

गलती  उम्र की

समय  सीमा नहीं मापती

यह  किसी को भी

कहीं  भी

नाप  लेती है।


@ बलबीर राणा अडिग 


रविवार, 8 जनवरी 2023

उतणदंड उत्तराखण्ड

 


अनियंत्रित निर्माण हर प्रखण्ड

विकास की जद में खण्ड-खण्ड

आध्यात्म आस्था गई पानी भरने

जब से आया पर्यटन पाखंड।

 

लिखे जा रहे हैं विनाश शिलाखण्ड

कल केदार आज जोशीमठ दंड

सुरंग शूल कब तक सहेगी धरती

कल और कोई मठ होगा झंड।

 

क्याजी ब्वन ? कैमा ब्वन

उतणदंड उत्तराखण्ड ।

 

रचना : ©® बलबीर राणा अडिग

8 Jan 2023