शुक्रवार, 5 मई 2023

पहली अनौपचारिक चिट्ठी



अरे हाँ याद है तुझे ? 

शिबू के हाथ जो 

पहली अनौपचारिक चिठ्ठी भैजी थी मैने 

और 

तूने भी तो हाथौं-हाथ प्रतिउत्तर दिया था ? 


तब वो चिठ्ठी वैसे की वैसे मिली थी मुझे 

जो तेरे कांपते हाथौं ने 

गोंद से चिपकाने के साथ 

खूब थूक से गीला किया हुआ था

जो मुझ तक पहुँचने पर भी गीला ही था। 


उस लिफाबे की चम्पत चिपकन 

प्रेम का राज 

किसी को पता ना चलने का यकीन रहा होगा तेरी तरफ से 

या 

मुझे अहसास कराना रहा होगा कि 

प्यार की पहली किरण फूटने के साथ 

पसीजा है यह थूक 

या 

अपनी जूठन भेजकर 

पक्का इरादा जता रही होगी 

एक होने का 

ख्वणी-ख्वणी, पता नहीं 


मैंने क्या लिखा होगा सही-सही याद तो नही मुझे 

पर हाँ 

आदतन बता सकता हूँ 

कि

पहले प्यार की कोमल नाजुक भावनाओं,

उत्साही उमंगों,

एवं 

हवा के संग आस-पास 

उड़ती प्रेम की रंगीन मंशाओं   

के वजाय

पकाने वाले जीवन सिद्धान्त

और 

देश समाज की डरती सहमती 

रीति नीति ही ज्यादा लिखी होगी मैंने 

जिन्हें तब से आजतक 

तू सुन रही है और 

मुझे बिंगा रही है 

कि 

छी ! अकल भी नि तुमू पर। 


हा हा हा 

हाँ यकीनन 

यही तो लिखा था तूने 

उस चम्पत चिपकाए 

बंद लिफाबे के अन्दर 

कॉपी के बीच से फाड़े पूरे एक तौ पर 

प्रेम पत्र के नाम 

यही 

एक वाक्या, एक बात 

छी! अकल भी नि तुमू पर। 


हाँ यार सच्च तो कहती है तू, 

कि 

मुझ पर अकल नहीं  

और सुन ! 

चाहिए भी नहीं मुझे दुनियां की तमाम अकल 

तेरी अकल के सिवा,

जिस अकल से मेरी गिरस्थी में

सुख और अमन का गुलिस्ता 

खिला रहता है सदानी हमेशा ।


@ बलबीर राणा ‘अडिग’

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