मंगलवार, 9 अगस्त 2016

हिम्मत के संग चलना होगा।

काँटों की चुभन, सहना आना होगा
फूलों की सेज, संभलना आना होगा
सुख-दुःख का सारथी हिम्मत
हिम्मत के संग चलना होगा।

अँधेरे में कदम बढ़ाना होगा
उजाले में ठहरके देखना होगा
कुछ नया जरुर दिखेगा पथ पर
उस नयें से कुछ समझना होगा
हिम्मत के संग चलना होगा।
कहीं तपती धूप होगी
कहीं ठिठुरती ठंड मिलेगी
कभी अवरोध बनेगी मूसलाधार  
निर्जन सूखे के संग निभाना होगा
हिम्मत के संग चलना होगा।
एक तरफ छूटती ढलान दिखेगी 
सामने टोपी गिराती चढ़ाई होगी
सीधे-सुगम में हौंसले टूटते देखे अकसर 
जोश-होश बंधुओं को मिलाना होगा
हिम्मत के संग चलना होगा।
कडुवा हितेषी पहचानना मुश्किल
मीठा विद्वेषी समझना मुश्किल
गुप-चुप शांत सुखी की पहचान कठिन होगी  
हँसाने वाले दु:खी का हाथ खींचना होगा
हिम्मत के संग चलना होगा।
रचना:- बलबीर राणा ‘अडिग’

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

आवाज लगानी होगी

बर्फ जमी जो संशय की पिघलानी होगी,
एक और धारा गंगा की पश्चिम को बहानी होगी।

जिन्न बन चिपका जो बधिरपन   
सहन की दीवार हिलानी होगी ।

हर घर सड़क और चौबारे से   
मसाल जय भारत की उठानी होगी

बस में नहीं सफ़ेद धोती काले कृत्य ढोलेरे की 
ये लड़ाई हमारी है खुद लड़नी होगी।

बिखंड करते अमन के दुश्मनों को,
ये बात सरद पार जाकर बतानी होगी ।

बाज आ जाओ नापाको छोडो गीदड़ भभकियां


आज एक सुर में आवाज लगानी होगी ।
आवाज लगानी होगी।


@ बलबीर राणा ‘अडिग’