सोमवार, 12 दिसंबर 2022

गजल




निगाहों की जद में आओ तो कहूँ,

गुनाहों की हद में आओ तो कहूँ।


कितनी मायाळी छुँयाळ* है ये आँखें,  

आँखों से आँख लड़ाओ तो कहूँ।


किसने कहा पत्थर जितम* है वह,

फूल से रिसना न पाओ , तो कहूँ।


निरमोही जैसा क्यों लड़ भिड़  जाते हो, 

बिना मोह के मौ* पाओ तो कहूँ।


कौन  है अंदर जिसने जकड़ा है जिया, 

छुड़वा दूंगा पिया बनाओ, तो कहूँ।


नहीं खोले मैंने ड्वार किसी ओर को,  

तुम सांकल खड़खड़ाओ, तो कहूँ।


कितना जिगरा है मैं भी तो देखूँ अडिग, 

जरठों पर भी जिया लगाओ, तो कहूँ।


*शब्दार्थ :- 

मयाळी - मोहनी 

छुँयाळ - बातुनी

जितम - छाती

मौ - परिवार 

ड्वार - दरवाजे

जरठ - बृद्ध 


@ बलबीर सिंह राणा अडिग

ग्वाड़ मटई, चमोली उत्तराखंड 

रविवार, 4 दिसंबर 2022

गजल




बादलों सा बरखा की कहानी में रहें,

गम के जैसा आँखों के पानी में रहें ।


फेंको मत ऐसे टूटे आईने के टुकड़ों को,

ताकि अपने बिखरे निशानी में रहे।


छोकरापन नहीं ठीक झंगरळया हो गए

हम पुराने हुए पुरानी में रहें।


जुबां ज्यूंद्याल नहीं, जो फेंको दो मुट्ठियां भर

अखंड मोतिम है जुबां, जुबानी में रहें।


वक्त वादियां हैं, दूर निकल जाती हैं, 

रवाँ में ही फायदा, रवानी में रहें ।


छोड़ दें देह की अकड़ सकड़ *अडिग*,

दिल कहता है जवां है तो जवानी में रहें। 


अर्थ :-

झंगरळया- आधा सफेदी वाले बाल

ज्यूंद्याल - पूजा के अभिमंत्रित चांवल

मोतिम - वचन, वाणी


*@ बलबीर राणा 'अडिग'*

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

खेल फुटबॉल का

 



पांवो से पांव लड़े

सर से सर भिड़े

मैदाने जंग एक बॉल पर

ऐसे भिड़े कि ऐसे भिड़े ।

 

फुटबॉल के खिलाड़ी हैं

पारंगत हैं अनाड़ी न हैं

नाम नमक निशान पर जूझते

कोई शहरी कोई पहाड़ी हैं।

 

लात-लातों की बात मिली

गेंद फिरकी सी घूम चली

बॉल बेचारी नाचती रही

कभी इधर चली, कभी उधर चली।

 

थी यहीं वह, अब यहाँ नहीं

थी वहीं वह, अब वहाँ नहीं

जगह न कोई मैदान में

गेंद कहाँ नहीं, कहाँ नहीं।

 

क्षण इधर गई, क्षण उधर गई

भागती-भागती हाँपती रही

क्षण विसराम उसे तब मिला

जब एक खेमे के गोल दगी।

 

चरम रोमांस का खेला होता

अदभुत संगत का मेला होता

विजय श्री सरताज उनके 

जिनके हौंसलों में रेला होता।

 

विश्व के सभी फुटबॉल खिलाडियों को समर्पित

 

रचना : बलबीर राणा ‘अडिग’