पांवो से पांव लड़े
सर से सर भिड़े
मैदाने जंग एक बॉल पर
ऐसे भिड़े कि ऐसे भिड़े ।
फुटबॉल के खिलाड़ी हैं
पारंगत हैं अनाड़ी न हैं
नाम नमक निशान पर जूझते
कोई शहरी कोई पहाड़ी हैं।
लात-लातों की बात मिली
गेंद फिरकी सी घूम चली
बॉल बेचारी नाचती रही
कभी इधर चली, कभी उधर चली।
थी यहीं वह, अब यहाँ नहीं
थी वहीं वह, अब वहाँ नहीं
जगह न कोई मैदान में
गेंद कहाँ नहीं, कहाँ नहीं।
क्षण इधर गई, क्षण उधर गई
भागती-भागती हाँपती रही
क्षण विसराम उसे तब मिला
जब एक खेमे के गोल दगी।
चरम रोमांस का खेला होता
अदभुत संगत का मेला होता
विजय श्री सरताज उनके
जिनके हौंसलों में रेला होता।
विश्व के सभी फुटबॉल खिलाडियों को समर्पित
रचना : बलबीर राणा ‘अडिग’
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