मंगलवार, 28 जुलाई 2015

कर्म कलाम बन जाए


देखो हंगामा के स्क्युलरो या ओबेसी
आँशुं यूँ नहीं निकलते डर से या बेवसी।

सच्चे मुसलमान के लिए आज राष्ट्र रो रहा है
माँ भारती के आँखों का वो तारा जा रहा है ।

बात किसी हिन्दू मुसलमान की नहीं
बात किसी जाती धर्म सम्प्रदाय की नहीं।

बात राष्ट्र धर्म सर्वोपरि और ईमान की है
मानवता के जो लिए जिये उस इन्शान की है।

ऋषि योगी पैगम्बर जो सम्पूर्ण अवतार था
गीता कुरान का एक बंध एक सार था।

एक दिन धरती पर मिटटी सबको त्यागनी है
कर्म कलाम बन जाए सबको पढ़नी यही कहानी है।

#श्रधांजलि_डा_कलाम
@ बलबीर राणा "अडिग"

सोमवार, 27 जुलाई 2015

एक और उद्वेग

तुझे अपना समझ जी रहा था
नहीं पता था तु पराया समझ निभा रहा है
इबादत लिखने चली जब कलम  दिल में तेरे
देख हैरान हूँ परायापन की स्याही पहले से पुती हुयी है।

@ बलबीर राणा "अडिग"
©सर्वाधिकार सुरक्षित

शनिवार, 18 जुलाई 2015

मेरा हिम प्रवास

जाने कैसे कटते दिन कैसी गुजरती है रातें
ठिठुरता रोम रोम और क्रन्दन कराती है हवाएँ
तुझसे क्यों खपा होने लगा मैं गिरिवर
रचने वाले ने खिलोने में दी तेरी ये फिजायें।

दूर से जितना मोहक लगता है तू हिम शिखर
तेरा आँगन निर्जीवटता बिष पुष्पों से भरा है
डरता है सजीव जीवन तेरे आशियाने से
इस लिए मंद मूक मुश्कान लिए तु निश्चल खड़ा है।

क्यों नहीं पूछता उन नराधम इन्शानो से
जिन्होंने तुझ ऋषि पर भी हक़ की रेखा खींच दी।
क्या खोएगा क्या पायेगा वो तेरे शैल खंडो से
स्वेत मृत आवरण पर भी जिन्होंने मुठ्ठी भींच दी।

कितनी भी खीज उतार तू शीत बबडंरों के झोंको से
डगमगाउँगा नहीं पला हूँ मैं भी माँ भारती की ढूध् की धार से
क्यों ना कट जाए सर, निकल जाए सांस इस जेहन से
पहरा करेगी रूह अडिग की, घूम घूम तेरी इन चोटियों से।

रचना-: बलबीर राणा 'अडिग'