सोमवार, 21 जनवरी 2013

जानते सुनते भी अन्जान

जीवन की सच्चायी को
महसूस, करते सबको देखा
इस सच्चायी को चरित्रार्थ करते
किसी को न देखा।
दूसरों की बात पर फब्तियां कसते सबको देखा,
दूसरे मन क्या गुजरी ये जानते न देखा।
किसी की, उम्मीद के टूट जाने पर
तुरूप मारते सबको देखा,
दो बचन सांत्वना के बोलते न देखा।
राह पडे पत्थर पर ठोकर मारते सबको देखा,
पत्थर भी, किसी काम आयेगा उसे सम्भालते न देखा।
दूसरे के गूंगे पर हंसते सबको देखा,
अपना ही जब गूंगा हो जाय ये भाव समझते न देखा।
दुनिया तेरे रंग भी अजीब है,
जानते सुनते भी अन्जान बनने की रीति है।  

10 दिसम्बर 2012

लडकी : भ्रुण की पुकार

अरी ओ !! माँ,
मैं तेरी आवाज सुन रही
तु क्यों मुझे मिटाने का बिचार कर रही।

अपने गर्व में उगे अंकुर को
क्यों रौंधना चाहती हो?
क्यों अपने दामन में हत्यारिन का दाग लगाना चाहती हो?

तु ही बता लडकी भ्रुण होने में मेरा क्या दोष है
तु भी तो नारी है,
फिर क्यों? मुझ पर क्यों रोष है

जरा सोच!
तेरी माँ भी तुझे गर्व में मार देती
आज तु कहाँ? जननी बन लडके की चाह रख पाती।

मेरे इस प्रश्न का उत्तर क्या? तेरे पास है
बिना नारी के क्या? धरती पर जीवन की आश है।

तु क्यों इस सत्य को मिटाना चाहती हो?
प्रकृतित्व पर वार करना चाहती हो।

मैं भी जग में आना चाहती हूँ।
रूपहले संसार को देखना चाहती हूँ।
बेटी, बहन, बहु और माता का फर्ज निभाना चाहती हूँ।

सुन !!! मुझ लडकी भ्रुण की पुकार
मैं, दुनियां का भ्रम तोडना चाहती हूँ
नारी बन कर जीवन की हर ऊँचाई छूना चाहती हूँ ।

नवम्बर 2012

रविवार, 20 जनवरी 2013

जिंदगी भर सुकून का आशियाना,
खुशियों की मंजिल खोजता रहा
दुःख की परछाई से दूर भागता रहा
लेकिन ये तो जाना नहीं
सुख दुःख जीवन की गाडी के दो पहिये हैं

Dec 2012

कल्पना की छाया

लिखता था, खत उसके नाम
जपता, अक्षरों की माला सुबह शाम
शब्द मिटाता, खत फाडता
फिर नयी शब्द माला गुंथता,
सम्भालता।
दिल के उदगार,
मन के भावों को
कागज के पन्नो में भरता,
किशोर प्यार की लता को,
प्रेम की वर्णमाला से सहारा देता।
आवेश में आता,
बिद्वेश प्रकट करता,
कल्पनाओं के, सागर में गोते लगाता।
मेरा वो किशोरवय
भविष्य के, ताने बाने बुनता
सपनो के संसार में
रेत के महल बनाता,
फिर इस महल को
अक्षरों के, फूलों से सजाता।
शब्दों, की बगिया को
पंक्तियों में संवारता,
फिर तोडता संवारता।
लोक, लज्जा, के भय से
किशोर मन को डराता,
लेकिन!!!!
आज भी, भ्रम और संशय मेरा
बरकरार  है
कौन थी वह ?
जिसके लिए था बेकरार,
कौन थी वह एक कल्पना की छाया
अंकित थी मन में, उसकी दुबली सी काया
मन के कपाट पर जोर मारा,
छाया का चित्र बनाया
ये कौन!!!!
ये तो वही जिसके
पहलु में आज
जीवन का एक चौथाई पखवाडा
गुजर चुका,
तब था अन्जान
आज उसके पहलु में बना नादान।
 10 दिसम्बर 2012

कृपण

अर्थ, लोभ में लोलुप मै कृपण
जीवन भर मुठठी बांधे रहा
लोभ के बशीभूत
क्रोध, क्षोभ, दया दबाये रखा।

ना रखी, श्रद्दा कभी
ना ही जागा भक्ति भाव।

अर्थ, का प्यासा मैं
क्या जानू दान निदान
आत्माभिमान, जागा नहीं
 कहां से बढता आत्म सम्मान।

रात दिन गठरी बांध,
लालच को सगीनी बनाये रखाता हूँ
श्रृष्ठिी के रूप माधुर्य से
न कभी मुग्द होता हूँ ।

संसार, में दीन दुखिःयों देख
कभी न हाथ बढाया
इस लोभ के मन्दिर में
ना कभी कोई कारज कराया।


इतना, निठठल यह दिल
अपमान से भी क्षुब्द ना हुआ
लोम हर्षक अत्याचार देख
मेरा क्या कह पल्ला झाडा।

इस, लोलुपता से कैसे पार पाऊंगा
चौथी अवस्था में कहॉ जाऊंगा ।


18 दिसम्वर 2012

तृष्णा भरे जीवन की तृप्ति


उमड घुमड काले मेघों की
घोर गर्जना सुन प्यासा चातक
निराश की निन्द्रा से जागा
सचेत मन
प्यास ब्याकुल
सूखी आँखे
काली घटाओं को निहारती फिरती
तरंगित शरीर आशमान में नाच उठा
आज इन्द्रदेव प्रसन्न होने वाले हैं
झमाझम बौछारे के साथ बरसने वाले हैं
कई दिनों की प्यास बुझने वाली है
मस्त मंगल चातक दल झूम उठा
ये क्या?
निरदयी पवन का झोंका आया
उग्र गति से बदलियों को उडा ले गया
आशाओं पर तुषारपात कर गया
ऐसे ही हवा इन चातकों के जीवन में
आती जाती क्षणिक जगी
आश को तोड जाती
फिर भी चातक दाना चुगना
बन्द नहीं करता
जीवन रूपी युद्ध से मुंह नही मोडता
आशा और उमंग से फिर
बादलों से भरे आशमान को निहारते हुए
तृष्णा भरे जीवन को
तृप्ति से जीता

नवम्बर 2012

एक तु ही सच्चा तेरा नाम सच्चा


एक तु ही सच्चा तेरा नाम सच्चा
अब तेरे सिवा कहीं मन नहीं लगता
मेरी विनती सुन ले भगवन
अपने चरण में शरण ले ले भगवन

सुख की चाह में दर दर भटका
धरती के कोने कोने छान मारा
नहीं मिली जीवन की खेवन हार नय्या
एक तेरा ही द्वारा जहॉं केवट दिखाता
यहीं लगेगी नय्या पार भगवन
एक तु ही सच्चा...................

ये जीवन मायाजाल में है फंसा
झूटे मोह के तालब में तन मन धंसा
इस माया नगरी से कैसे पांव निकले
सभी तो हैं इस रसातल में ढूबे
कोई नहीं हाथ पकडने वाला
तु ही हाथ पकडदे भगवन तु ही यहां से निकाल दे भगवन
एक तु ही सच्चा...................

इस मनुष्य योनि मे आकर क्या किया
पशु भांति अपने लिए ही जिया
लिप्सा के अंधकूप में झपटाता पकडता रहा
झूटे सपनो में बेसुद्ध होकर सोया
सच्चायी में जब आँख खुली तेरा ही द्वार पाया भगवन
एक तु ही सच्चा ..................

अपने पराये के भेद में भिदता रहा
भले बुरे को पहचान ना पाया
नश्वर दुनिया की दौड में दोडता रहा
मंजिल का कहीं अन्त ना पाया
जिसे देखा वही अतृप्त प्यासा पाया
अब तृप्ति तेरे चरणों के अमृत में ही भगवन
एक तु ही सच्चा ............

05 जनवरी 2013

कनु जमानु बदली


कनु जमानु बदलीगे कनु बदली समाज।
चाटुकार और घुशखोरों की हुयुं चा राज
नी करदा कै पर दया धर्म नी रखदा कै की लाज ।

कनु जमानु बदली कनु बदली समाज ।
रूप्या पैंसा पैंसा रूप्या बिन रूप्यों नी करदा काज।
निरबंशी  और लापता ह्वेगे ख्यालीराम और दया राम
मनखीयत पर कबजा करेली चालाक मतलबराम ।

कनु जमानु बदलीगे कनु बदली समाज ।
टकों मा ईमान बिकणु टकों कु ही रय्युं सम्मान
बिना टकों की खुटी खसकदी कनु के होलु गरीग कु काम।

रसूखदारों की रोटी घी मा टपकणी चा
जै कु नी क्वी पुछण वालु वै की रोटी कडकडी ह्वयीं चा

कनु जमानु बदलीगे कनु बदली समाज
अपणी भाषा सौतेली बणी बिदेशी भाषा मा हूणु काज।

शर्म आज्दी अपनी बोली बुन मा
दूसरा तें समझदा गंवार ।
गिटपिट हिंग्लिस बोली
बणी जान्दा जाट साब।

कनु यु जमाना बदली
कनी बदली मनखीयों की नेथ।
जै तें भी देखा वे कु बणी द्वि रूप द्वि भेष ।

18 जनवरी 2013
रचना . बलबीर राणा ‘भैजी’