शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

स्वच्छ भारत और मैं


प्रस्तावना:-
    शरीर स्वस्थ बुद्धि चेतन के शूत्र को मनुष्य स्वयं के विकास के लिए वर्षों से अपनाता आया है लेकिन सवाल ये है कि शरीर कैसे और कब स्वस्थ रहेगा? शरीर के स्वस्थ रहने के लिए जरुरी है कि हमारे आसपास का वातावरण प्रदूषण रहित हो, पीने वाला पानी साफ़ हो और खाध्य सामाग्री साफ हो, तभी हमारी शाररिक क्रियाएँ सुचारू रूप से चलेंगी और बुद्धि और चेतना अच्छी रहेगी, बुद्धि और चेतना का स्वस्थ रहने का मतलब है जीवन के कार्यों का सही से सम्पादन और यही सम्पादन ही देश सेवा है, देश सेवा सीमा पर लड़ना ही नहीं होता अपितु अपने काम को निस्वार्थ भावना से क्रियान्वयन करना भी देश सेवा है तभी देश विकासोन्मुख रह सकता है।
    स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत सरकार द्वारा देश को स्वच्छता के प्रतीक के रुप में पेश करना है। स्वच्छ भारत का सपना महात्मा गाँधी के द्वारा देखा गया था जिसके संदर्भ में गाँधीजी ने कहा कि, ”स्वच्छता स्वतंत्रता से ज्यादा जरुरी है”, गाँधीजी ने निर्मलता और स्वच्छता दोनों को स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन के लिए  अनिवार्य बताया। लेकिन दुर्भाग्य से भारत आजादी के 70 साल बाद भी इन दोनों लक्ष्यों से काफी पीछे है। अगर आँकड़ो की बात करें तो केवल कुछ प्रतिशत लोगों के घरों में शौचालय है और आम आदमी का इस विषय पर नजरिया “मेरा तो क्या” वाला कायम है, इसीलिये भारत सरकार पूरी गंभीरता से बापू की इस सोच को हकीकत का रुप देने के लिये देश के सभी लोगों को इस मिशन से जोड़ने का प्रयास कर रही है ताकि आम भारतीय की सोच और स्वास्थ्य को स्वच्छ किया जा सके। भारत रत्न स्वतंत्रता सेनानी महान सामाजिक परिवर्तक और लेखक आचार्य विनोवा भावे ने सुचिता से आत्म दर्शन सिद्धांत को प्रतिपादित किया और इसकी शुरुवात उन्होंने इंदौर शहर से मल साफ़ करने से की थी।  
👍स्वच्छ भारत अभियान क्या है ?

    स्वच्छ भारत अभियान की शुरुवात हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2 अक्टूबर 2014 गाँधी जयंती के दिन नई दिल्ली के राजघाट से किया और इसे बापू की 150वीं जयंती (2 अक्दूबर 2019) तक पूरा करने का लक्ष्य रखा। इस अभियान को सफल बनाने के लिये सरकार ने सभी लोगों से निवेदन किया कि वो अपने आसपास और दूसरी जगहों पर साल में सिर्फ 100 घंटे सफाई के लिये दें। इसको लागू करने के लिये बहुत सारी नीतियाँ और प्रक्रिया है  जिसमें पूर्ण अमल होना अभी बाकी है, इनमें  तीन चरण  बनाये है, योजना, क्रियान्वयन, और निरंतरता। इस अभियान को राष्ट्रीय आंदोलन के रुप में भारत सरकार द्वारा देश के 4041 साविधिक नगर की आधारभूत संरचना, सड़के, और पैदल मार्ग, की साफ-सफाई का लक्ष्य कर आरंभ किया गया और भारत के शहरी विकास तथा पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के तहत इस अभियान को ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लागू किया गया है।

👍आखिर स्वच्छ भारत अभियान की आवश्यकता क्यों है?

    आदिकाल या पौराणिक काल में जीवन प्राकृतिक चीजों पर निर्भर था जो प्रकृतिजन्य होने के कारण सजीव जीवन के लिए घातक नहीं था लेकिन शनै-शनै मनुष्य की चेतना और बुद्धि विकास की परणीत विज्ञान का अविर्भाव  पृथ्वी पर हुआ जिसके अभूतपूर्ण परिणाम निकले जिसने जीवन को सहज भी बनाया और बिनाशकारी भी, तब धरती पर जनसंख्या कम थी और मनुष्य के मैल का निश्तारण प्रकृति के साथ समागमित था। आज सहज सुलभ मशीनरी निर्माण में अत्यधिक मात्रा में रासायनिक चीजों के उपयोग और बढती जनसँख्या के कारण भूमंडलीय वातावरण का मूल अवयव हवा और पानी दुषित हो गया जिससे निरंतर प्राकृतिक चीजों का क्षरण हो रहा है, इस कारण पृथ्वी पर सजीव चीजें पशु-पादप और मनुष्यों का जीवन अनेका-अनेक व्याधियों से ग्रसित हो रहा है। इसलिए जीवन को बचाए रखने के लिए गन्दगी के सुव्यवस्थित निश्तारण के लिए स्वच्छता अभियान को राष्ट्रव्यापी बनाने की जरुरत पड़ी। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भारत में इस मिशन की कार्यवाही निरंतर चलती रहे जिससे  जनता का भौतिक, मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक कल्याण हो सके व गांधी जी के शूत्र “निर्मलता और स्वच्छता दोनों को स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन के लिए अनिवार्य है” के लिये बेहद आवश्यक है। नीचे कुछ बिंदुओं उल्लेखित करना आवश्यक है जो आज इस मिशन की बानगी उभर कर आये हैं।
भारत के हर घर में शौचालय हो और खुले में शौच की प्रवृति को खत्म करना।
अस्वास्थ्यकर शौचालय को पानी से बहाने वाले शौचालयों में बदलना।
हाथ के द्वारा की जाने वाली साफ-सफाई की व्यवस्था का जड़ से खात्मा करना।
नगर निगम के कचरे का पुनर्चक्रण और दुबारा इस्तेमाल, सुरक्षित समापन, वैज्ञानिक तरीके हो और सही मल प्रबंधन को लागू करना।
खुद के स्वास्थ्य के प्रति भारत के लोगों की सोच, स्वाभाव और नजरिये में परिवर्तन लाना।
स्वास्थ्यकर प्रणाली और प्रक्रियाओं का पालन और क्रियान्वयन।
ग्रामीण और शहरी सभी लोगों में वैश्विक जागरुकता लाना और स्वास्थ्य के प्रति सचेत करना।
पूरे भारत को स्वच्छ और हरियाली युक्त बने जिससे स्वच्छ पानी और हवा सभी को मिल सके।

👍मैं भारत स्वच्छता के लिए क्या करूँगा?:-

    स्वच्छता के परिपेक्ष में आम भारतीय की आज तक की सोच को निम्न बिन्दुओं में उल्लेखित कर रहा हूँ जहाँ आम की बात है तो देश की असी फीसदी जनता आज भी मध्यम और निम्न वर्ग में हैं और इस स्तर पर कुछ दोषीय सोच और व्यवहार हमारे जीवन का हिस्सा चुके हैं अर्थात ये दोष हमारे अंतोचित का हिस्सा बन गए और यहाँ से चीजें जल्दी बहार निकालनी जरा मुश्किल होती है।
👌केवल अपनी और अपने ही घर की सफाई ठीक करना मेरा काम।
👌सड़क पर कूड़ा फेंकने आम बात।
👌बीडी, सिगरेट, पान, गुटका और सभी प्रकार के छिलके और रेपर कहीं भी फेंकने की आदत।
👌जहाँ शंका वहीँ छुपाव में मल मूत्र का त्याग करना और जहाँ-तहाँ थूकना।
👌सफाई या काम करने के बाद शरीर की सफाई में लापरवाह होना।
👌ये मेरा नहीं सार्वजनिक है की सोच।
👌ये मेरा नहीं सरकारी या सम्बंधित व्यक्ति अथवा संस्था का काम है।
      इसके अलावा कुछ अन्य अनुचित आदतें और व्यवहार देखने को मिलते है जो स्वच्छता के परिपेक्ष में अच्छे नहीं हैं। अब ये आदतें और व्यवहार कैसे बदली हों ताकि देश के इस राष्ट्रव्यापी अभियान को सफल बनाया जा सके और दुनियां में भारत की छवि एक स्वच्छ देश के रूप में हो सके इसके लिए देश का नागरिक होने के नाते मुझे उपरोक्त आदतों में बदलाव और निम्न कार्य व जिम्मेवारियों पर गौर और अमल करना नितांत जरुरी है तभी जाकर हम गांधी जी के सपनो के भारत का निर्माण कर सकेंगे।
👌हर व्यक्ति विशेष को संकल्प लेना होगा कि में कम से कम हप्तें में एक दिन सार्वजनिक सफाई में शामिल हूँ, चाहे वह किसी भी दर्जे का मातहत क्यों न है, अपने तम और अहम् को निकालना होगा।
👌कैसे भी हो अपने घर में शौचालय बनाऊँगा और केवल और केवल शौचालय इस्तेमाल करना।
👌घर का कूड़ा कचरा बहार खुले या सड़क में न फेंककर कूड़ेदान का ही प्रयोग करना तथा अपने आस-पास के लोगों को भी ऐसे ही करने के लिए प्रेरित करना।
👌बस, ट्रेन या पैदल यात्रा के दौरान खाने पीने वाली वस्तुओं के खाली पैकेट रैपर को उधर ही न फेंक कर अपनी जेब या बैग में रखना और जहाँ भी कूड़ादान सुलभ हो वहां उसका निस्तारण किया करना, इस आदत का हर आदमी के निजी व्यवहार में आना जरुरी है। यही आदत सार्वजनिक जगह जैसे पार्क, धर्मस्थल, थियेटर आदि में भी अमल में लानी जरुरी है।  
👌गाँव कस्बों में सार्वजनिक सफाई संगठन का हिस्सा बनना जो कि हप्ते कम से कम एक दिन अपने इलाके की सफाई करे इससे वे व्यक्ति भी प्रेरित होंगे जो इस कार्य में रूचि नहीं रखते हैं, क्योंकि उनके घर के आगे का कूड़ा जब और लोग साफ़ करेंगे तो व्यक्ति विशेष को जरुर शर्म आएगी और वो मुहीम का हिस्सा बनेगा। उत्तराखंड पौड़ी जिले के  संगलाकोटी कसबे के लोग ऐसा कर रहे हैं जिससे प्रेरित होकर आप-पास के गाँव बाजार और कस्बों के लोगों ने भी ऐसा कदम उठाया है।
👌अपने आस-पास के लोगों को जागरूक करने के साथ अपने बच्चों और परिवार को जागरूक करना, जब हर घर के सदस्य की सफाई के प्रति उचित मानसिकता होगी तो अपने आप समाज ठीक होगा।
इस अभियान के लिए जरुरी सोच और क्रियान्वयन की शुरुवात पहले अपने घर से होना जरुरी है।
👌सफाई कर्मचारी या नगरपालिका की कहीं भी लापरवाही दिखे उसकी सिकायत सम्बंधित तालूकानो को करना और पुर-जोर तरीके से काम ठीक न होने की समस्या का हल निकलवाना, मेरा तो क्या वाली मानसिकता  और व्यवहार बदलना जरुरी है।
👌रोको और टोको की नीति अपनानी होगी सुधार के लिए किसी न किसी को तो बुरा बनना ही पड़ेगा।
उन घरों, दप्तरों, कारखानों इत्यादि को चिन्हित कर उनकी शिकायत पुलिस या सम्बंधित डिपार्टमेंट में करना जिनका वेस्टेज पानी और मल मूत्र का निकास नदी, नालों, पोखरों और तालाबों में हो रहा हो।
👌मैं भारत सरकार से अपील करता हूँ कि स्वच्छता के नियमो का उलन्घन करने वाले व्यक्ति और संस्था के लिए इतना कड़ा कानून और सजा का प्रावधान किया जाय कि दूसरा व्यक्ति कभी भी ऐसा करने की हिम्मत न कर सके भले ही उसने लापरवाही में टॉफी का कागज ही सड़क पर क्यों न फेंक दिया हो।

संक्षेप:-
    इस तरह हम कह सकते है कि 2019 या और कुछ वर्षों में भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बनाने के लिये स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार का एक स्वागतीय कदम है और माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का संकल्प से सिद्धि के शूत्र को हर भारतीय नागरिक प्रभावी रुप से अनुसरण करें तो आने वाले कुछ वर्षों में भारत वाकई दुनियां का स्वच्छ देश होगा और हम धरती पर जीवन बचाने का परमार्थ कमा सकते हैं। स्वच्छता से हमारे मस्तिष्क में अच्छे विचार और दिल निर्मल भावनायें पैदा होंगी जिससे काम स्वच्छ होंगे, तो देश का स्वच्छ होना लाजमी है चाहे कूड़े कचरे से हो या नासूर बने भ्रष्टाचार अन्य कुकृत्यों से। अंत में चार पंक्तियाँ हर देश वासी को समर्पित करता हूँ:-

मैं मैं नहीं, तू तू नहीं
सदा ही मैं मैं ममियाते रहे
तू तू तुतियाते रहे
बहुत हो गया, करें अब कुछ जतन 
जिससे हो स्वच्छ अपना वतन
जब देश की हर चीज पर समझते हो अधिकार
फिर इसे साफ़ करने से क्यों इनकार ?
चलो यहां-वहां थूकने की आदत बदलें भ्राता
थूकने के लिए नहीं है यह भारत माता।


निबंधकार – बलबीर सिंह राणा "'अडिग'





  



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