सोमवार, 30 सितंबर 2013

अडिग शब्द मेरे तुझे पुकारे





बम बम बम भोले भंडारी, गिरिजा पति त्रिपुरारी
जुबां में तेरा नाम सदा हो, अनुकम्पा तेरी त्रिशूल धारी

भाल चन्द्रमाँ जो तेरे विराजे, शीतलता की प्रेम छांव फैलाए,
जटा से बहती नित गंगा की धारा, सींच धरती, फूल खिलाये

घोर हलाहल विष कंठ में थामे, जग वृष्ठी तूने संभाली,
हाथ त्रिसूल धरि दुष्ट संहारे, मनुष्य सदाचार की रक्षा करायी


बाम अंग माँ शक्ति जगदम्बे, श्री मंगल गणेश संग आसन लगाये,
त्रिनेत्र जग रक्षा को खोले, इच्छित वर दे भक्त भय निर्मुक्त कराये

नंग वदन भस्म रमायी, बागम्बर छाल वस्त्र अपनाई,
गले नाग और जटाजूट बन, शत शत नमन अजब भेष धारी

तेरे परताप का बखान जितना करूँ, शब्द कहीं पार न पाये,  
किन्चक प्रार्थना स्वीकार प्रभु, अडिग शब्द मेरे तुझे पुकारे

© सर्वाध सुरक्षित
.....२० अगस्त २०१३
स्तुति-: बलबीर राणा “अडिग”           
    

ममता



!!!

ममता

कैसी जडवत जकडन तेरी

जीवन पर,

मानव् तो मानव,

दानव भी तेरी मुठ्ठी में,

प्राणी धरा के

तेरे अलर्गन में बसीभूत,

साम्राज्य तेरा,

भूलोक क्या पातळ लोक तक,

ममता तेरी नियति…….

प्रेम में तपिश,

दया में करुणा, 

विछोह में बिरह,

यादों के समन्दर में

तेरी पतवार जिगर को खेती,

आश मिलन की जगाती,

धन्य ममता तेरा प्रताप,

तू नहीं होती

रेगिस्तान होता जीवन…..

 © सर्वाध सुरक्षित  .........बलबीर राणा “अडिग”

२२ जुलाई २०१३




शनिवार, 28 सितंबर 2013

मैं अभस्त हूँ



मैं अभस्त  हूँ ...........
कंटक भरी राहों में चलने का,
आमावास्य की रात में चमक देखने का,
रंगभरी हरी-भरी वादियों में,
विरह गीत गाने का,
मैं अभस्त  हूँ .........
तपती रेत में, नंगे पाँव चलने का,
बारह महीने शिशिर ऋतु में,
ठिठुरने का,
आंशुओं को, पलकों में रोकने का,
प्रेम का सरोवर जीवन में होकर भी,
प्यासा रहने का,
फिर भी!
तृप्त है  मन,
जिजीविषा की इन  कटंकी राहों पर,
लेकिन प्रिय?
तूने क्यों उठाया बीड़ा,
मेरे संग इस राह में सहचर्य निभाने का,
क्या ये मेरी प्रीत का कर्ज है,
या..............
जिगर पर प्रेम का मर्ज है,
चलो जो भी हो,
तेरे सानिंध्य ने मेरी अभस्त अडिगता,
को और अडिग बना दिया       
 ...........५ अगस्त २०१३
© सर्वाध सुरक्षित
बलबीर राणा “अडिग”