मंगलवार, 20 जनवरी 2015

चकबंदी और भूमि सुधार के बिना पहाड़ का समुचित विकास असम्भव

     केंद्र सरकार या राज्य सरकार कितने भी विकासोन्मुख योजनाएं चला दे गारंटी के साथ कहता हूँ बिना भूमि सुधार और चकबंदी के उत्तराखंड का रति भर भी वास्तविक विकास नहीं हो पायेगा, हाँ सीधे- साधे गरीबों को पेट पालने हेतु छुट- पुट रोजगार और चकडेतों के लिए भण्डार अवस्य मिल जायेगा। औपनिवेशिक दौर से आज तक हुक्मरानो ने पहाड़ की श्रमसाध्य जनता को खुद के पाँव में खड़ा होने लायक विकल्प नहीं दिए परस्थितिजन्य पहाड़ का आदमी मनिआर्डर अर्थव्यवस्था के सहारे जीवन को संवारने पर जुटा रहा और वास्तविक जमीनी विकास के लिए सरकारों का पहाड़ के प्रति उदासीन रवया रहा है। पृथक उत्तराखंड के बाद उत्तराखंडी सरकारों ने मुख्यमंत्रियों की आवाद तो खूब की परंतु राज्य की जमीन बंजर होने से बचाने में बिफल रही पहाड़ का युवा केवल एक पीडीय सुखद जीवन की चाह में शहरों की और लालायित होता रहा, आलम ये है आज पलायन से बिरान सुन्दर सोम्य प्रकति की गोद में बसे गांव अपनों की पीड़ा से कराहते दिख रहे हैं।
   लम्बे समय से चल रहे विकास की योजनाओं का लाभ धरातल पर नहीं दिख रहा हाँ इतना जरूर हो रहा है सम्बंधित योजनाओं से जुड़े नौकरशाह और नेताओं की पाँचों उंगलिया घी में रहती है और माफियाओं की पौ बारह, इसी परिधि में चल रहे अनियांत्रि विकास योजनाओं के चलते केदार नाथ जैसे प्राकृतिक कोप भाजन का शिकार हर वर्ष राज्य को होना पड़ रहा है।
   विचारणीय बात यह है कि किसानो का खुद खेती के प्रति उदासीन होना और योजनाओं का कागजों में सिमटना क्यों सतत जारी है, कारण पूरी खेती का एक जगह में ना होना है। कृषि बागवानी की चाहे कितने पाठ क्यों ना पढ़ाये जाय और कश्मीर हिमाचल के जैसे होने के हजार सपने दिखाए जाय लेकिन 15 से 20 जगह 5 से 10 किलोमीटर में बिखरी खेती में कैसे काम होगा कैसे नईं वैज्ञानिक तरीके की खैती ईजाद होगी, उत्तराखंड की भूमि में आपार संभावनायें भी है और सामर्थ्य भी, परन्तु! कमी है दृढ़ इच्छा शक्ति सरकार की और हम यहाँ के वाशिंदों की भी, अग़र आज का बेरोजगार युवा चकबंदी पुरोधा श्री गणेश सिंह रावत गरीब जी के जैसे संकल्पित हो तो 16 से 18 घंटे मनसिक टीस देने वाली शहरों की नौकरी में जीवन नहीं खपाना पड़ेगा और मैदानों में 100 गज व् 5 विस्वा जमीन के लिए पूरे जीवन की कमाई भू माफियों के हाथों नहीं लुटानी पड़ेगी।

लेखक:- बलबीर राणा 'अड़िग' (गरीब क्रांति अभियान कार्यकर्त्ता)
ग्राम मटई चमोली

शनिवार, 10 जनवरी 2015

देव देखो खंजर उठाया है


देव क्यों बैठा मौन
देव देख! ये हैं कौन
अपने को तेरे दूत कहने वाले दानवी झुण्ड धरती पर क्यों आया है
देख कैसा त्राहिमाम मचाया है।

राक्षश ये हृदय विहीन
विवेक रहित संवेदन हीन
खंजर की धार पर किस भगवान किस धर्म की पैरवी करने वाले हैं
ये जो मानवता का गाला घोंटने वाले हैं।

बुद्ध ईशा तु पीर पैगम्बर
राम कृष्ण तु धरा अम्बर
अमानुषता की किताब लिखी नहीं तुमने फिर ये पाठ किसने पढ़ाया है
किसने इनको भरमाया है।

विनाश का यह तूफ़ान
हस्ती मिटाने वाला फरमान
धरती तो बची रहेगी, खुद ही खुद को मिटाने का बेड़ा इन्होंने उठाया है
देख जिन्होंने खंजर उठाया है।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग''
© सर्वाधिकार सुरक्षित मेरे ब्लॉग 'अडिग शब्दों का पहरा' में
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