मंगलवार, 29 मार्च 2022

प्रकृति वैभव

 


 


नीला अम्बर आँचल ओढ़े
प्रकृति का यह मंजुल रूप
रात्रि चंदा शीतल छाया
दिवा दिवाकर गुनगुनी धूप।
 
जड़, जंगल  पादपों  का  वैभव
जीवनदायनी सदानिरायें निर्मल
तन हरीतिमा  चिंकुर  प्राणवायु
पय पल्लवित जीव अति दुर्लभ।
 
आँगन सतरंगी कुसुम वाटिकायें
गोद  पशु  विहगों   का  विहार
लहलहाती अनाज की  बालियां
क्षुधा    मिटाता   समग्र   संसार।
 
तेरे इस अनुपम वैभव में भी
दुःखी हो अगर कोई इन्शान
कर्महीन मतिहीन  ही  होगा
जो न समझा   तेरा  विधान ।
 

 @ बलबीर राणा अड़िग