रविवार, 17 अगस्त 2014

विश्वकर्मा

हर एक ईंट सजोयी मैने
हर कण सीमेंट का घोला
अट्टालिकाएं खड़ी कर संवारी
जीवन में मेरे फिर भी ढेला

मर्म ना जाना किसी ने मेरा
मैं भी तो सपने बुनता हूँ
खुले आसमान के नीचे
एक बन्द आशियाना चाहता हूँ

मुठ्ठी भर मजदूरी से
उदर आग बुझ जाती

घोंसले में आँ-आँ करते चूजों देख
तपिस गरीबी कि और तपाती

चिकनी सड़क पर फिसलने वालो
गज-गज इसे सजाता आया हूँ
चलना जरा संभल के इसमें
सबकी सलामती की दुवा करता हूँ

उन बन्द हवेलियों की ठंडी हवा  से
झोपड़ी की गर्म पवन  अच्छी है
तुम्हारे दिखावे के प्रेमालिंगन से
तन्हा मुझ विश्वकर्मा की अच्छी है 



६ अगस्त २०१४ 
© सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना :- बलबीर राणा “अडिग”

 

समृद्ध साध्य हो देश हमारा

कहने को ना रहे कोई बेचारा
समृद्ध साध्य हो देश हमारा
सीमाओं का ना रहे बंधन
सबका एक सुर ताल हो सारा ।

ना कोई रूप का, ना किसी रंग का
ना जाति- धर्मं का, ना सम्प्रदाय का,
पहचान सबकी भारत के भारती हो
सबकी ईद सबकी दिवाली हो
बसुधेव कुटम्बकम का वह पुराना नारा
समृद्ध साध्य हो देश हमारा ।

गंगा-जमुना निर्वाध बहे
खग-मृग निर्भय चरे
स्वच्छ रहे पत्ती-पत्ती
तेल रसित हो जीवन बत्ती
चैन का गुन्जन गाएं भोंरा प्यारा
समृद्ध साध्य हो देश हमारा ।

जड़ चेतन मानुष-मानुष की
एक दूजे के दुःख हरने की
ना कोई वैभव में गरजे
ना कोई रोटी को तरसे
सबके मुख सुख का निवाला
समृद्ध साध्य हो देश हमारा ।

हर दिन हो नयाँ सबेरा
हर रात हो  घनी नींद का घेरा
तमस तम हर चित से हरे
मन सरोवर प्रेम नीर से भरे
जग में जग-मग हो भारत मेरा
समृद्ध साध्य हो देश हमारा ।


कहने को ना रहे कोई बेचारा
समृद्ध साध्य हो देश हमारा
अडिग के सपने को मिले सहारा
समृद्ध साध्य हो देश हमारा



15 अगस्त 2014
© सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना :- बलबीर राणा “अडिग”
 



कृष्ण पूर्णांश




कृष्ण पूर्णांश
उन्मुक्त जीवन
तृष्णा विहीन
स्वच्छंद
जहाँ चाह वहां राह
सम्पूर्ण सन्दर्भ से गर्वित
सम्पूर्ण कलाओं का कलाकार
सम्पूर्ण अवतार
भोगी - योगी
प्रेम करुणामयी
अहिंसक चित
पर
हिंसा के दनावल उतरता तत्पर
एक हाथ माया की मुरली
दुसरे हाथ सुदर्शन
दो विपरीत धाराओं में उर्जा नियोजन
विपरीत क्रियाओं का समायोजन
इस लिए
कृष्ण अंश नहीं
पूर्णांश
सम्पूर्ण अवतार ....


© सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना :- बलबीर राणा “अडिग”
 

सपनो की आजादी बाकी है



उत्सव आजादी के हम  खूब  मना चुके
निजी आजादी का जश्न मनाना बाक़ी है
संघर्षी भारत आजादी के सपने प़ूरे हुए थे
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।

जाति धर्म के बक्र-रेखाओं में
तभ भी रेंग रहा था जीवन
ऊँच नीच की खायी में
आज भी उछल रहा जीवन

आजादी तो ओपनिवेशवाद से मिली
उदारवाद की लड़ाई जारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।
 
जीवन के सुनहरे सपनो की
मार्केटिंग ब्रांडिंग का दौर चल रहा
राजनीति के बाजारों में
सपनो का मोल-भाव लग रहा

दिखाए सपनो में सोये-सोये ताली बजाना जारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।
 
आजादी को दूर से देख जब महापुरुषों ने
इन्द्र धनुषी मोहक थी सुकून वाली लगती 

आज निकट पहुँचा वर्तमान इसके 
हाय हाय की बिरानी चहुँ और झलकती 

खींच-खांच जुगाड़ों से

गाडी गृहस्ती की खींचना कितना भारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।

इमानदारी की परिभाषा भी
आजाद लोगों ने खूब गडी है
यह तो उसका काम है
मुझको क्या पड़ी है

कटाक्ष और निंदा की, सभाएं हर नुकडो में जारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।
 

समता और अधिकार
राजतंत्री आजादी का अर्थ हो सकता
अन्तरतम से जब तक आजाद ना हो
स्वतंत्र कहलाना व्यर्थ हो सकता।

खुद की पहनी बेड़ियों से तन मन आज भी भारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।
 
रचना:- बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित