शनिवार, 12 अगस्त 2023

तात-मात का पात बनना जी



ये सुदृढ़ सक्षम तात-मात 

जिस दिन बूढ़ा जाएंगे,

सब तरफ से असक्षम बन 

खुद से खुद में न रह पाएंगे।


पले बड़े जिन बट बृक्षों की छाँव 

उन बटों को मत भूलना जी,

अपने यौवन उन्माद में उन्हें 

निराश्रय मत होने देना जी ।


संसार में आने पर जैसे 

मनुज सहारे पर होता है,

और संसार से जाने को 

फिर सहारे पर आता है।


तब तुम अपने सहारों का 

सुदृढ़ सहारा बनना जी,

जैसे संभाल तुम्हारी हुई थी 

वैसे ही संभाल करना जी।


बाहर से जर्जर, अंदर ढोर  

प्रकृति प्रवृत हो जाएंगे, 

कपड़े पर टंगा डम्मी सा 

मात्र आकृति रह जाएंगे।


तब तुम उन आकृतियों पर 

प्रेम से वस्त्र पहनाना जी,

अपने आमोद से दो पल निकाल 

उन जरठों से बतियाना जी।


चेहरे पर होंगी झुरियां बलय

आँखें गुफा सी हो जाएंगी,

दाँत मुँह का साथ छोड़ चुके होंगे

गाल गड्डे मात्र रह जाएंगे।


तब तुम उनकी झुरियों बलय से 

मैल रेसौं को धोना जी,

सर चेहरे के बिखरे बालों की

साज संवार करना जी।


कान पड़ जायेंगे बंद बहरे

बातें नहीं सुन पायेंगे,

तुम्हारी गपशप चुहल को 

अपनी उपेक्षा समझेंगे।


तब तुम उनके पोती-पोतों से 

कान में जाकर बुलवाना जी,

उनके अतीत की बातें करके 

मन उनका बढ़ाना जी।


बिना बात की बातों पर

जरठ खुद में बड़बड़ायेंगे, 

लाख समझाने पर भी

अपनी ही लगायेंगे।


तब तुम थोड़ा धीरज रखकर

उनकी हाँ में हाँ मिलाना जी,

ताव में बृद्ध आमात्यों को 

अपशब्द मत कहना जी।


शरीर में रहेगी कमजोरी कंपन

कभी हाथ से बर्तन छूटेगा,

मुँह तक हाथ नहीं जा सकेगा कभी 

कोर बाहर ही बिखर जाएगा।


तब तुम अपने हाथ से

कोर मुँह में डालना जी,

प्रकृति नियम दोहराव है यह 

तात-मात का तात बनना जी।


मनुज इस संसार में 

दो बार अबोध बालक बनता है,

जब वह आता है 

और जब जाने को होता है।


सत्य नियम प्रकृति प्रदत्त है 

लकड़ी जल कर पीछे आती है,

आज के सत कर्मों की पूँजी

कल व्यर्थ नहीं जाती है।


अगर पुण्य कामना जीवन में

पितृ सेवा जीते जी कर लेना जी,

मरने के बाद रीती रस्मों के 

भरोसे बिल्कुल मत रहना जी। 


कटु जड़ सत्य, सच्च लिखना 

अडिग कलम का कर्म है जी, 

तात-मात सेवा से बड़कर

और न कोई सेवा धर्म है जी।



12 अगस्त 2023

✍️✍️✍️@ बलबीर राणा 'अडिग'

ग्वाड़ मटई, बैरासकुण्ड चमोली

मंगलवार, 8 अगस्त 2023

अंतहीन : गीत

 

आज पुरुवाई संग एक कहानी आई,

खुशबु वो कुछ-कुछ पुरानी आई।

अंतस देखने लगा उस दुनियां को, 

जब थी लड़कपन की रवानी पाई।


दिखता नहीं था भेळ भंगार कहीं,

चलते थे पाँव ये कहीं के कहीं।

कहीं फाळ, कहीं कच्चाक लगती थी,

माँ कंडाली से फिर स्वागत करती थी।


आज वे कंडाळी के दमळे रुलाने आई,

खुशबु वो कुछ कुछ पुरानी आई।


डगर कहीं, नजर कहीं रहती थी,

ककड़ी के झ्यालों पर आँख टिकती थी।

बस्ते भर-भर नारंगी भकोरना था,

गालियों से मन नहीं झकझोरना था।


आज फिर वो गालियाँ डराने आई

खुशबु वो कुछ कुछ पुरानी आई।


स्कूल न जाने का अजीब बहाना था,

जाकर गदेरों में नहाना जो था। 

पीरियड गोल करना भी रौब  होता, 

गुरुजी के डंडे का खूब खौफ  होता।


आज डंडों का फंडा मन भाने आई,

खुशबु वो कुछ कुछ पुरानी आई। 


गुच्छी खेले बिना कहाँ ठौर था, 

मजा गुल्ली डंडे का कुछ और था। 

झड़प झापड़ मुक्का मुक्की चलती थी,

बिछुड़ते प्रेम भुक्की नहीं छूटती थी।


गजब दोस्ती की अजब कारिस्तानी आई,

खुशबु वो कुछ कुछ पुरानी आई।


वो बचपना आज कहीं खो गया,

बस्तों के नीचे दबा लिया लगा।

कंप्यूटर मोबाईल लत चाटने लगा, 

बाल मन डिजिटल डाटा कब्ज़ाने लगा ।


नोनीहालों का हाल ये दुखानी आई,

विकास अंधड़ उड़ाने आई।


चंचलता ये कैसी जद में आने लगी,

बच्चों की सरारतें सुस्ताने लगी। 

कोई नहीं जान रहा बाल मन की थाह,

बस प्रसंटेज की प्रसंशा भुनाने आई।

आज पुरवाई संग एक कहानी आई।



@ बलबीर राणा 'अडिग'

शनिवार, 5 अगस्त 2023

शिक्षा एक चिंतन

 *कुछ यक्ष प्रश्न व कटु सत्य : शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षा तंत्र*  अडिग कलम से ✍️✍️✍️

क्या आज हमारी शिक्षा व्यवस्था, शिक्षण संस्थान और शिक्षक भारतीय मनीषा बनाये रखने व सुसभ्य समाज के निर्माण में सक्षम है?????

व्यक्तियों के समूह से समाज और समाज संचालन के लिए एक तंत्र की जरुरत होती है जो समाज, राज्य व राष्ट्र की रीती नीति का निर्धारण करता है, और उसे जमीनी क्रियान्वयन कराता है, नीति अनुरूप क्रियान्वयन ही किसी राष्ट्र को महान राष्ट्र बनाता है। लेकिन जब तंत्र की नीव पर ही दीमक लग जाए तो राष्ट्रभवन खड़ा रहने की कोई गारंटी नहीं।

राष्ट्र अखंडता की नीव रूपी तंत्र में शिक्षा तंत्र एक अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग होता है, इस अंग पर लगी व्याधियाँ सम्पूर्ण राष्ट्र को ही व्याधिग्रस्त बना देता है।  प्रस्तुत आलेख में उधृत मुद्दे शिक्षा तंत्र के साथ सभी राष्ट्रवासियों और नीति नियंताओं से सम्बंध रखते हैं, क्योंकि देश का हर नागरिक राष्ट्र के उथान और पतन दोनों का कारक होता हैं, किसी एक नहीं सभी के माथे पर राष्ट्र का नाम अंकित होता है, भारत मुझ से नहीं हम से बना है। 

फिर भी ये बातें मेरे चरित्र पर बतौर एक शिक्षक, एक नागरिक सही बैठती है तो यह संयोग नहीं पूरा प्रयोग है और मुझे खुद में सुधार करते हुए एक अच्छे भारतीय एवं भारतीयता के निर्माण में योगदान शुरू कर देना चाहिए।

कुछ मुद्दे, प्रश्चिह्न 👇 जो हमारी शिक्षा के मूल पर लगा धिवाड़ा (दिमक) है जिससे मानवीयता और भारतीयता दोनों की जड़ खोखली हो रही है। 

यदि आध्यापक चरित्रवान, संस्कारवान, ज्ञानी होंगे तो जरुरी है विद्यार्थी भी ऐसे निकलेंगे, और जब हर विद्यार्थी चरित्रवान, संस्कारवान, कर्मप्रधान होगा तो भारत को फिर से विश्वगुरु होने से कोई रोक नहीं सकता। 

लेकिन ऐसा होना संभव नहीं लग रहा है।

*क्योंकि*

जिस देश में शिक्षा का पूर्णरूपेण व्यवसायीकरण हो चुका हो।

*क्योंकि*

अब भारत में निस्वार्थ गुरुकुलों से शिक्षा नहीं दी जाती, जहाँ से चरित्रवान, संस्कारवान कर्मप्रधान अध्यापक ही नहीं बल्कि नागरिक पैदा होता था।

*क्योंकि*

अब भारत में आचार्यकुलम नहीं किसी माफिया, भ्रष्ट राजनेता, अधिकारी के काले धन को सफ़ेद करने के लिए खोले गए एकेडमी व एजुकेशन इंस्टिट्यूट फलीभूत होते हैं, और मजे की बात यक कि इन एकेडमी और इंस्टिट्यूट में अध्यापक के चयन हेतु इंटरव्यू इनके नराधाम मालिक ही लेते हैं, चयन करते हैं। 

*क्योंकि* 

आज मोटी फीस पर चल रहे प्राईवेट शिक्षण संस्थानों में मानव नहीं मशीनों का निर्माण होता है। जहाँ दौड़ चारित्रिक विकास पर नहीं केवल प्रसंटेज पर है। 

*क्योंकि*

आज हम अध्यापक नहीं टीचर हैं और टीचर केवल टेक्निक सिखाता है, तकनिकी नैतिकता नहीं जानती वह चरित्र एवं व्यक्तित्व निर्माण नहीं कर सकती बल्कि केवल काम आसान करना, बनाना सिखाती है। उच्च व्यक्तित्व के लिए तकनिकी ज्ञान के साथ चारित्रिक ज्ञान जरुरी है। 

*क्योंकि*

आज के टीचर किताब का एक एक अक्षर ज्ञान स्वरूप देते नहीं पैसों में बेचते हैं। 

*क्योंकि*

काबिल व्यक्ति को सरकार सरकारी अध्यापक बनाती है लेकिन सरकारी अध्यापक का रिजल्ट जमीन सार्वजनिक है।


*क्योंकि*

क्योंकि भारत में सरकारी नौकरियां खैरात मानी जाती है। 

*क्योंकि*

सरकारी अध्यापक का बेटा प्राईवेट में पढ़ता है, उसे खुद अपनी शिक्षा व शिक्षा पद्द्ति पर विश्वास नहीं कि वह अपने बेटे को एक काबिल इंशान बना सके। 


*क्योंकि*

आधुनिकता की अंधी दौड़ ने नैतिकता और चरित्र का हनन कर दिया, जिसके चलते लंपटबाजी बुरी नहीं मानी जाती चाहे विद्यार्थी हो या शिक्षक। 


*क्योंकि*

हम पश्चात्य की दौड़ व होड़ में पीछे न रह जाएं की मानसिकता के चलते विद्यालय में असभ्य वस्त्र पहनना फ़ैशन जो मान लिया जा रहा है।


*क्योंकि*

इस दौर के ट्यूटर टीचर समय समाप्त हो जाने पर सवाल आधे में छोड़कर कल पर टाल जाते हैं, जबकि बच्चा उसी समय सवाल को पूरा जानने की जिज्ञासा रखता है, बच्चे की आज वाली सक्रीय मानसिक दशा वो टीचर कल कहाँ से लाएगा.


*क्योंकि*

उस बच्चे के उपर क्लास में इस लिए ध्यान नहीं दिया जाता कि वो बच्चा उस टीचर के पास ट्यूशन नहीं पढता।


*क्योंकि* 

आरक्षण ने अयोग्य व्यक्तियों को शिक्षण संस्थानों पर थोप दिया हैं व तुष्टिकरण की राजनीती ने भ्रष्ट व्यक्ति को नीतिकार बना दिया है। 


*क्योंकि*

हमारे शिक्षण संस्थानों में *मातृभाषा बोलना और सिखाना* हीनता व असभ्य माना जाता हो। और बिना मातृभाषा के मनुष्य उथान संभव नहीं । 


*क्योंकि*

भारत में शिशुमंदिर, विद्यामंदिर, संस्कृत विद्यालयों में बच्चे को पढ़ाना दकियानुशी, पिछड़ा माना जाता है, जहाँ भारतीय दर्शन, सनातन मनीषा व नैतिक जिम्मेवार भारतवंशी का निर्माण होता था और होता है।


*क्योंकि*

हमने संस्कृत जैसी वैज्ञानिक भाषा को ताज्य कर अंग्रेजी को अपना जीवन आधार मान लिया है, भाषा सीखना गलत नहीं लेकिन उस भाषा से जनित कुसंस्कारों का भोगी होना गलत ही नहीं राष्ट्र के लिए हानिकारक है। 


*क्योंकि* 

भारत में आज भी मैकाले की शिक्षा व्यवस्था चल रही है या उसी का अनुशरण किया जा रहा है, जिसे केवल भारत को तौड़ने के लिए बनाया गया था,


*क्योंकि*

मैकाले की इस शिक्षा पद्द्ति वाले तंत्र में क्वालिटी नहीं क्वांटीटी का विकास होता है।


*क्योंकि*

आज की शिक्षा व्यवस्था में चरित्र निर्माण नहीं विचित्रता निर्माण हो जा रहा है जैसे उच्चश्रृंखलता, उदंडता, अनुशासहीनता, असहिष्सुणता, निर्दयता, वाकपटुता की जगह मुंहफट बेशर्मता इत्यादि कुलक्षणी आदतें व्यवहार। 


*क्योंकि*

अभिव्यक्ति की आजादी के नाम से उच्च शिक्षा केंद्र को राष्ट्रद्रोही एवं कलुषित राजनीती का केंद्र बनाया जा रहा है और स्वघोषित उद्दार कुलीन शिक्षक वर्ग राष्ट्र को गलत इतिहास परोसता है।


*क्योंकि इस शिक्षा व्यवस्था में तत्वज्ञान,  आत्मज्ञान एवं मनुष्य अंतःकरण शुद्धि की कोई व्यवस्था नहीं है। 


*अगर होती तो!!!* :-


संताने ऐसी असंवेदनशील पैदा नहीं होती, जो छोटी सी बात पर हिंसक होना या आत्महत्या जैसे जघन्य कदम न उठाते। 


*होती तो :-*

संताने किशोरवय में नशे और अय्यासी का शिकार नहीं बनते।


*होती तो :-*

संताने व्यवसाय पर लगते ही माँ  बाप को दूध की मखी जैसे जीवन से निकाल नहीं फेंकते।

*होती तो*

आज सुव्यवस्थित, सभ्य, अनुशासित संयुक्त भारतीय पारिवारिक व्यवस्था का विलोपन नहीं होता।

*होती तो :-*

बच्चे अपनी मातृभाषा, संस्कृति व संस्कारों से बिमुख नहीं होते । 

*होती तो :-*

बच्चे सहनशील बनते, अपने माँ  बाप, अध्यापकों पर हमला नहीं करते, या उनकी एक छोटी सी डांट या दंड पर मजमा खड़ा नहीं करते।

*होती तो*

हमारी कार्यप्रणालियों में सुचिता होती, एक दुसरे पर भरोसा होता, हर नैतिक काम को उपर की आमदानी से नहीं जोड़ते.

*होती तो*

कोई विधर्मी यूँ मार काट नहीं मचाते, शास्त्र और शस्त्र का अनुपालन होता, बुझदिल सक्यूलर पैदा नहीं होते। 

इस सबके लिए शिक्षक, शिक्षण संस्थान ही नहीं हमारा पूरा तंत्र और हम सब जिम्मेवार हैं , जिन्होंने शिक्षा को केवल व्यवसाय या जरुरत तक ही अनुपालित किया, समाज, राष्ट्रहित या आदर्श जीवन मुल्यों के लिए नहीं। 

जय हिन्द, जय भारत

बंदेमातरम 

आलेख  © बलबीर राणा 'अडिग'