रविवार, 3 जुलाई 2022

गजल


 


मोहकता तो एक  बहाना है,

अंगजा  को धरती सजाना है।

 

जितने  भी  रंग  ऋतुऐं  बदले,

उन्हीं में उसका आना जाना है।

 

आभा जो कुसुम बन निखरी,

उसको  नहीं  कुम्हलाना  है। 

 

और  प्रारब्ध पुष्प का बाकी,

फल बनके  बीज  बनाना है।

 

प्रेम से गाड़े जाने वाले बीज को,

धरा चीर अंकुर  बन  आना  है ।

 

ये  तो प्रकृति  रीति  है  अडिग

अंकुर का वृक्ष बन बूढ़ा जाना है।

 

@ बलबीर राणा ‘अडिग’


12 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ये तो प्रकृति रीति है अडिग

अंकुर का वृक्ष बन बूढ़ा जाना है

बहुत खूब ...... यही शाश्वत सत्य है ...

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

आभार स्वरूप जी

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

आभार अनिता सैनी जी

Meena Bhardwaj ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन ।

कविता रावत ने कहा…

ये तो प्रकृति रीति है अडिग
अंकुर का वृक्ष बन बूढ़ा जाना है।

Satish Saxena ने कहा…

वाह

मन की वीणा ने कहा…

जितने भी रंग ऋतुऐं बदले,

उन्हीं में उसका आना जाना है।
वाह!!

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

आभार सभी का कृत्य हूं

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद आदरणीया

Sudha Devrani ने कहा…

ये प्रकृति रीत है...
वाह!!!
बहुत ही सुंदर।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

आभार सुधा जी

muhammad solehuddin ने कहा…

अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
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