मोहकता तो एक बहाना है,
अंगजा को धरती सजाना है।
जितने भी रंग ऋतुऐं बदले,
उन्हीं में उसका आना जाना
है।
आभा जो कुसुम बन निखरी,
उसको नहीं कुम्हलाना
है।
और प्रारब्ध पुष्प का बाकी,
फल बनके बीज बनाना
है।
प्रेम से गाड़े जाने वाले
बीज को,
धरा चीर अंकुर बन आना है ।
ये तो प्रकृति रीति है
अडिग
अंकुर का वृक्ष बन बूढ़ा
जाना है।
@ बलबीर राणा ‘अडिग’
12 टिप्पणियां:
ये तो प्रकृति रीति है अडिग
अंकुर का वृक्ष बन बूढ़ा जाना है
बहुत खूब ...... यही शाश्वत सत्य है ...
आभार स्वरूप जी
आभार अनिता सैनी जी
बहुत सुन्दर सृजन ।
ये तो प्रकृति रीति है अडिग
अंकुर का वृक्ष बन बूढ़ा जाना है।
वाह
जितने भी रंग ऋतुऐं बदले,
उन्हीं में उसका आना जाना है।
वाह!!
आभार सभी का कृत्य हूं
धन्यवाद आदरणीया
ये प्रकृति रीत है...
वाह!!!
बहुत ही सुंदर।
आभार सुधा जी
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
greetings from malaysia
let's be friend
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