रविवार, 6 सितंबर 2015

माँ को शहीद का सन्देश


 
माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा देना
हाथ उठा तिरंगा लहराके धीर उन्हें अपना बता देना
जिसे देख रही तु चिर निंद्रा में ये माटी का पुतला है
तेरा लाल अभी भी सीमा पर खड़ा है, निगाह उठा जाना।

काल के पास भेज आया उनको काफ़िर बन जो आए थे  
मेरी माँ के दामन में सेंध लगाने जो आए थे  
पर कुतर कुतर चीलों का निवाला बना गए उनके  
ये, काश्मीर पर नजर रखने वालो को समझा देना
माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा देना।

नहीं होगा चीर हरण द्रोपदियों का, अब पांडव मूक नही हैं
पांसों के जाल से छलने वाले, भरत पुत्र अब नहीं हैं
तोड़ रहे हैं, तोड़ते रहेंगे हर चक्रव्यूह काफिरों का वाणों से  
काली के भेष में आकर माँ,  दैंत्यों को ललकार देना
माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा देना।

कंचन निकला या पीतल, तेरा पूत ये तुझे जग बता देगा
सीना ताने जय भारती जब, जनक मेरा गर्व से गरजेगा  
हर जन्म तेरी कोख में जन्मूँ कोख पर अपनी मत रोना
शोक-संताप क्षोभ कर मेरी आत्मा मैली मत होने देना
माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा देना।

 नन्हें बांकुर के पालने में कम्बल मेरी बिछा देना
भारत माँ की रक्षा का पाठ बीर नारी उसे पढ़ाते रहना
जब हो जवान गबरू वो बेटा, मेरा हेट पहना देना
लाल का लाल है तैयार, ये शकुनियों को चेता देना       
माँ जब ताबूत आये मेरा, दो आँशु गिरा मुश्करा देना।



@ बलबीर राणा “अडिग’

 
 

 

 

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

संस्कार


तू मरेगा तो युग मरेगा
बस छूट जायेंगे जीवास्म
लेकिन
ध्यान रखना
जीवास्म परजीवी होते हैं
जहाँ पोषण मिले
जम जाता है
बस अडिग
तुझे
यहीं समझना है
समझाना है।

@ बलबीर राणा 'अडिग'