सोमवार, 24 दिसंबर 2012

झुकुडी मा उमाल ऐ जान्दू


झुकुडी मा उमाल ऐ जान्दू
त्वे देखी मन कंयारू ह्वे जान्दु
बिराण हुय्यां युं थोला खोला
किले उजडा होला युं रोला
सूनी डांडी रीती गाढ गदनियों मा 
उदास हिलांस कु विलाप
घसियारियों ते बुलोण लगी
रोंतेली धारों की रंगत
नयां जमाना का बथों मा उडिगे
बांजा पुंगडी रूणी लगी
हल्य्या बल्दों ते तरसोणी लगी
…….. बलबीर राणा भैजी
24 Dec 2012


  
  





झुकुडी मा उमाल ऐ जान्दू


झुकुडी मा उमाल ऐ जान्दू
त्वे देखी मन कंयारू ह्वे जान्दु
बिराण हुय्यां युं थोला खोला
किले उजडा होला युं रोला
सूनी डांडी रीती गाढ गदनियों मा 
उदास हिलांस कु विलाप
घसियारियों ते बुलोण लगी
रोंतेली धारों की रंगत
नयां जमाना का बथों मा उडिगे
बांजा पुंगडी रूणी लगी
हल्य्या बल्दों ते तरसोणी लगी
…….. बलबीर राणा भैजी
24 Dec 2012


  
  




तुम मार्डन ह्वेगे बाबू



अब दिनो का दिनोण ह्वेगे बाबू
हमारा पुराणा दिन चलीगे
तुम मार्डन ह्वेगे बाबू
ब्वे बाब की सेवा इतिहास बणी रैगे बाबू
नी टिकणी खुटी तुम्हारी ये देली मा
अब घोर आण तुम बिसिरेगे बाबू

पट निरपट हुंय्यु नौकरी का बाना
दुनियां की भीड मां तुम भटकण लग्य्यां बाबू
अब दिनो का दिनोण ह्वेगे बाबू
तुम मार्डन ह्वेगे बाबू

क्या पायी मिल दिन राती खैर खैकी
ढुंगा डोली एक कैरी बाबू
अपणा भोल मा तुमतें संवारी बाबू
अब दिनो का दिनोण ह्वेगे बाबू
तुम मार्डन ह्वेगे बाबू

हमारी भी आशा छयी
ब्वारी कु हाथ एक गिलास चाय की अभिलाशा छयी
द्ववार बाटा का दिन ही पंख लगी जाला
यु मैन नी जाणी बाबू
अब दिनो का दिनोण ह्वेगे बाबू
तुम मार्डन ह्वेगे बाबू

गौं ख्वालों मा उठण बैठण
तुमल क्या जाणी बाबू
भै बन्दों नाते रश्तों कु सुख दुख
तुमल क्या पच्छियाणी बाबू
अपणी संस्कृति संस्कार तुमल कनै सिखण बाबू
अब दिनो का दिनोण ह्वेगे बाबू
तुम मार्डन ह्वेगे बाबू

तुम्हारा नौनियालों ना अपणी बोली भाषा
कख बटी बिंगण बाबू
पराया मुलुक की भाषा सीख
हमतें तुम अजाण ह्वगे बाबू
लोगों की रीति रिवाजों अपणे
बिदेशी ह्वगे बाबू 
तुम मार्डन ह्वेगे बाबू
……………बलबीर राणा “भैजी”
18 Dec 2012