क्यों? इन्सान भेडिया बन
रहा
घृणित कुकृत्यों से
मनुष्यता कलुषित कर रहा।
अरे !! तेरी भी तो जननी
नारी ही है
तु ये क्यूं भूल रहा ?
क्यों? नारीत्व का हरण कर,
आसुरी साम्राज्य को न्योता
दे रहा।
बिक्रमादित्य की कुर्सी पर
बैठे धर्मराजो !!
तुम क्यों शसंकित हो?
क्यों? मानवता की रक्षक
न्यायता को
मुक बधिर बनाये बैठे
हो।
बासना के इन बहसियों को
फांसी की सजा
क्यों नहीं सुनाते हो?
देश के निती र्निधारको
संसद से सडक तक केवल शब्द वाणों
से
कर्मों की इतिश्री ना करो।
फिर चार दिन बाद और कोई नारी
बहसियों का शिकार हो
जायेगी।
ऐसा एक शक्त विधान बनाओ कि,
बेटी बहन के लाज का कवच बन जाये।
कोई आगे इन्सान भेडिया ना
बन पाये।
..........बलबीर राणा “भैजी”
18 Dec 2012
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