रविवार, 20 जनवरी 2013

कल्पना की छाया

लिखता था, खत उसके नाम
जपता, अक्षरों की माला सुबह शाम
शब्द मिटाता, खत फाडता
फिर नयी शब्द माला गुंथता,
सम्भालता।
दिल के उदगार,
मन के भावों को
कागज के पन्नो में भरता,
किशोर प्यार की लता को,
प्रेम की वर्णमाला से सहारा देता।
आवेश में आता,
बिद्वेश प्रकट करता,
कल्पनाओं के, सागर में गोते लगाता।
मेरा वो किशोरवय
भविष्य के, ताने बाने बुनता
सपनो के संसार में
रेत के महल बनाता,
फिर इस महल को
अक्षरों के, फूलों से सजाता।
शब्दों, की बगिया को
पंक्तियों में संवारता,
फिर तोडता संवारता।
लोक, लज्जा, के भय से
किशोर मन को डराता,
लेकिन!!!!
आज भी, भ्रम और संशय मेरा
बरकरार  है
कौन थी वह ?
जिसके लिए था बेकरार,
कौन थी वह एक कल्पना की छाया
अंकित थी मन में, उसकी दुबली सी काया
मन के कपाट पर जोर मारा,
छाया का चित्र बनाया
ये कौन!!!!
ये तो वही जिसके
पहलु में आज
जीवन का एक चौथाई पखवाडा
गुजर चुका,
तब था अन्जान
आज उसके पहलु में बना नादान।
 10 दिसम्बर 2012