रविवार, 20 जनवरी 2013

कृपण

अर्थ, लोभ में लोलुप मै कृपण
जीवन भर मुठठी बांधे रहा
लोभ के बशीभूत
क्रोध, क्षोभ, दया दबाये रखा।

ना रखी, श्रद्दा कभी
ना ही जागा भक्ति भाव।

अर्थ, का प्यासा मैं
क्या जानू दान निदान
आत्माभिमान, जागा नहीं
 कहां से बढता आत्म सम्मान।

रात दिन गठरी बांध,
लालच को सगीनी बनाये रखाता हूँ
श्रृष्ठिी के रूप माधुर्य से
न कभी मुग्द होता हूँ ।

संसार, में दीन दुखिःयों देख
कभी न हाथ बढाया
इस लोभ के मन्दिर में
ना कभी कोई कारज कराया।


इतना, निठठल यह दिल
अपमान से भी क्षुब्द ना हुआ
लोम हर्षक अत्याचार देख
मेरा क्या कह पल्ला झाडा।

इस, लोलुपता से कैसे पार पाऊंगा
चौथी अवस्था में कहॉ जाऊंगा ।


18 दिसम्वर 2012

कोई टिप्पणी नहीं: