शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

गजल


बस्ती में ईमानदार कोई तो मिले, 

छुवीयूँ का साझेदार कोई तो मिले।


कौन करता विश्वास पर काम अब, 

तोता सिंह ठेकेदार कोई तो मिले।


रिश्ते भी मतलब के मोहरे बन गए, 

मतलब बिन नातेदार कोई तो मिले।


गलेदार भर गए गली मोहल्लों में, 

सच्चा सौदेदार कोई तो मिले।


चेहरे पे चेहरा चढ़ाए घूम रहे छोटे बड़े,

मुखड़ा बिन नकाबदार कोई तो मिले।


नकली माल-ताळ, चाल-ढाल चारों ओर,  

अडिग मौळयाण मालदार कोई तो मिले।


शब्दार्थ :-


छुवीयूँ - बातों 

गलेदार -झूठ की बुनियाद का सौदागर

मौळयाण - मूल स्रोत


@ बलबीर राणा 'अडिग'

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