बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

प्यार


प्यार को 
वैसे ही जाना है मैंने
जैसी
पंछी  ने आसमान
मछली  ने पानी को ।

वैसे ही
पकड़ के रखता हूँ इसे 
जैसे 
हरियल लकड़ी को ।

वैसे ही तरसता  
मचलता हूँ
जैसे 
चातक घटाओं को।

साफ स्वच्छ देखा है मैंने इसे 
कुहासे में बरखा की बूँद  सा 
धुंधले में धुला
कांच का वर्तन सा ।

फिर समझ पाया 
कि
अगर ये छूट गया तो 
टूट गया
फिर यह 
अनगिनत
नुकीले व धारदार
शूलों में बदल जायेगा
और फिर 
चुभता रहेगा जिगर पर 
काटता रहेगा शरीर को
जीवन भर ।

इसलिए
हर पल, हर घड़ी
संभाल के रखता हूँ 
कहीं छूट ना जाए
टूट ना जाए
यह प्यार।

8 फ़रवरी 23

#अडिगशब्दोंकापेहारा

@ बलबीर  राणा 'अडिग'

5 टिप्‍पणियां:

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद यादव ज़ी

yashoda Agrawal ने कहा…

व्वाहहहहहहह
पंछी और मछली की
सुन्दर व्याख्या
आभार
सादर

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार महोदया

Prakash Sah ने कहा…

वाह! बहुत खूब साहब। ऐसा प्रेम सौभाग्य है।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद शाह ज़ी