रविवार, 12 अगस्त 2018

उषा किरण


मुश्कान बिखेरती है वह झर-झर
किसलय कलियों के अधरों पर
आहिस्ता दस्तक दे रोशन दान से
चुपके चुम्बन करती कपोलों पर
अलसायी मृणांली देह संकुचाती
स्पर्श उसका आनन उरोजों पर
सरस सुरभि शीतल स्नेह लेकर
आयी है उषा किरण लाली भर कर
चिडया चूं चूं कर भोर वंदन करती
उषा किरण संग उर साधना जुट जाती
कंचन आभा सी चमकती ओश बूंद
दूर्वा शीश बैठ सबको लुभाती।

@ बलबीर राणा "अडिग"