कमी रखता नहीं कोई रह जाती है
राह संभलते भी ठोकर लग जाती है
अवरोध नहीं होता हर कोई प्रस्तर
कंकरी छोटी सी भी रोड़ा बन जाती है।
इम्तहान है जिंदगी का हर एक लम्हां
प्रश्न एक के बाद एक सामने आता है
पन्ने भरने की कोशिश हर कोई करता है
फिर भी कोई पन्ना कोरा ही रह जाता है।
सफर है यह जिंदगी चलती का नाम गाड़ी है
न चाहते हुए भी कुछ अवशिष्ट छूट जाता है
कोशिश करता है हर कोई निशानी छोड़ने की
वाकिया नुक्ता सा भी निशानी मिटा देता है।
रंग मंच है यह जिंदगी खुल के अभिनय करने का है
क्रीड़ा स्थली है यह यहाँ खूब जमके खेलना का है
ऐसा संभव नहीं हर मैच में जीत तेरी ही हो अड़िग
लेकिन तन मन से श्रम शिल्प नहीं छोड़ने का है।
@ बलबीर राणा "अड़िग"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें