बुधवार, 25 सितंबर 2019

रिश्ते



इस आश पे रोज पैरों को निकलता  हूँ
कि नाप सकूं फासले रिश्तों के इस जहाँ में
पर ठिठक जातें कदम उन खाईयों देख
जिनके मिजाज खुद में बहुत गहरे हैं।

2 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सृजन
सादर

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक अभिनन्दन आदरणीया