बुधवार, 8 सितंबर 2021

गजल : आत्महत्या



मत इतना भरने दो कि खुद फूट पड़ों,

एक मासूम सी चोट से ही टूट पड़ो।

 

भाई इतना खुदगर्ज तो नहीं है जीवन,

जो छोटी, अदनी सी बात पर रुठ पड़ो।

 

समस्या धर्ती की है निदान भी यहीं है,

जाने बिना ऐसे मत अनंत में कूद पड़ों।

 

जलजला संभालने वाले भतेरे हैं इर्द गिर्द,

मत खुद को असहाय समझ छूट पड़ो।

 

क्या गुजरेगी उन पर जिन्होने पाला,

उनकी आशाओं को यूँ ना सूट करो ।

 

तेरे जाने से जग खाली नहीं होने वाला,

पल्ला झाड मत अपनत्व को फूक चलो ।

 

आत्महत्या मुक्ति का मार्ग नहीं अडिग,

आत्मा की हद तक जीवन कूट चलो।

 

कूट - संर्घष से जीना

 

रचना : बलबीर राणा अडिग


 

3 टिप्‍पणियां:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

उम्दा भावाभिव्यक्ति

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
लाजवाब सृजन।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

dhanywad Aadarniyan Yashoda Agrawal ji, Vibha rani ji, aur Sudha Devrani ji
Meri abhivyakti par aapki pratikriya kalam ke liye aushadhi roop hai, abhar mahoday ji