सोमवार, 16 मई 2022

मकान बनाने का खेल

बनाती है वह

अपनी तरह की एक 

बहुमंजिला अट्टालिका,

खड़ा करती है लकड़ी के 

टुकड़ों से बिम, 

डालती है कूड़ा करक्कट की छत 

और 

बनने के बाद 

दूर से निहारती है

पसंद ना आए तोड़ती है

फिर बनाती है ।

मकान बनाने का यह खेल 

हर रोज खेलती है

मासूम कुमकुम

सामने बनती उस

ऊँची बिल्डिंग की तर्ज पर

जहां उसके माँ बाप 

सीमेंट सरिया बोककर

जुटाते हैं उसके लिए 

दो वक्त का निवाला। 


@ बलबीर राणा 'अडिग '

6 टिप्‍पणियां:

Kamini Sinha ने कहा…

मार्मिक सृजन, किसी के लिए शौक और किसी का जीवन यापन का जरीया

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (17-5-22) को "देश के रखवाले" (चर्चा अंक 4433) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा

कविता रावत ने कहा…

मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
दूसरों के लिए घर बनाते हैं लेकिन खुद बेघर रहते हैं ताउम्र, बड़ी बिडंबना है. बच्चे खेले तो क्या और किससे खेले यही सब लिखा होता हैं उनके भाग्य में, कौन सोचे, कौन उभारे उन्हें, खुद के लिए फुर्सत नहीं जिन्हें

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद कामिनी जी

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार कविता जी
आपके विस्तृत सारांश सहज स्वीकार्य

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार गुरुजी