धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
भय भूख और नींद
जितनी बढ़ाओ
बढ़ती जाती है ।
भय हौंसला
भूख ईमान
और नींद,
शरीर को
बंधक बनाती है।
इलै
अति नि कन
अति बल खति।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
इलैअति नि कनअति बल खति। .... अच्छि लगी अपणी गढ़वाली भाषा क शब्द
धन्यवाद कविता बहनजी
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2 टिप्पणियां:
इलै
अति नि कन
अति बल खति। .... अच्छि लगी अपणी गढ़वाली भाषा क शब्द
धन्यवाद कविता बहनजी
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