सोमवार, 29 जुलाई 2024

----: गीत :----*


बदलने से बदल गया अपना गाँव भी,
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

पश्चिम से हवा चली थी
पूरब को खूब जमी थी
उड़ै सब अपने रस्ते
भूले सब नाते रिश्ते
जितने नंगे होते जाएंगे
उतने मॉर्डन माने जाएंगे

*फूहड़ता अपनाने लगा अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

बौड़ा अब हुक्का नहीं भरता
काका मौ-मदद नहीं जाता
जेठानी को धै नहीं लगती
देवरानी अकेली पुंगड़ों जाती
जो उठने बैठने जायेगा
वो असभ्य कहा जायेगा

*चौपालें भूलने चला अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

बेटी को खुद नहीं लगती
माँ को बडुळी नहीं बिथाती
शिक्षित ब्वारी नहीं शर्माती
सासू की हाँ हूँ नहीं भाती
शादी करेंगे निकल जाएंगे
माँ बाप अकेले छोड़े जाएंगे

*बृद्ध आश्रम बनने लगा अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

ढोल-दमौ पिछड़े हो गए हैं
बैंड डीजे अगड़े बना दिए हैं
झुमैलो के ताल बेताल हुए हैं
डिस्को खिस्को अपना लिए हैं
जो जितना अपसंस्कृति फैलाएगा
वो उतना बौद्धिक कहा जायेगा

*अपनी रीति छोड़ने लगा अपना गाँव भी*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी

सबके खाते खुले हैं
कुठार खाली पड़े हैं
अन्नधन योजना चली है
कुटली कांकर सूख रही है
जो घर जितना रीता होगा
वो घर उतना सजीला होगा

*थैली अर्थव्यवस्था वाला हुआ गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

सरकारी स्कूल खाली पड़े हैं
प्राईवेट बच्चों से भरे पड़े हैं
नैतिक शिक्षा का नाम नहीं है
बस प्रसंटेज की हौड़ लगी है
जो *मातृभाषा* बोलेगा
उसको उपहासित होना पड़ेगा

*हिंगलिश हाँकने लगा अपना गाँव भी*
देखो मॉर्डन हुआ है अपना गाँव भी।

*@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'*


*----: गीत :----*
बदलने से बदल गया अपना गाँव भी,
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

पश्चिम से हवा चली थी
पूरब को खूब जमी थी
उड़ै सब अपने रस्ते
भूले सब नाते रिश्ते
जितने नंगे होते जाएंगे
उतने मॉर्डन माने जाएंगे

*फूहड़ता अपनाने लगा अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

बौड़ा अब हुक्का नहीं भरता
काका मौ-मदद नहीं जाता
जेठानी को धै नहीं लगती
देवरानी अकेली पुंगड़ों जाती
जो उठने बैठने जायेगा
वो असभ्य कहा जायेगा

*चौपालें भूलने चला अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

बेटी को खुद नहीं लगती
माँ को बडुळी नहीं बिथाती
शिक्षित ब्वारी नहीं शर्माती
सासू की हाँ हूँ नहीं भाती
शादी करेंगे निकल जाएंगे
माँ बाप अकेले छोड़े जाएंगे

*बृद्ध आश्रम बनने लगा अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

ढोल-दमौ पिछड़े हो गए हैं
बैंड डीजे अगड़े बना दिए हैं
झुमैलो के ताल बेताल हुए हैं
डिस्को खिस्को अपना लिए हैं
जो जितना अपसंस्कृति फैलाएगा
वो उतना बौद्धिक कहा जायेगा

*अपनी रीति छोड़ने लगा अपना गाँव भी*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी

सबके खाते खुले हैं
कुठार खाली पड़े हैं
अन्नधन योजना चली है
कुटली कांकर सूख रही है
जो घर जितना रीता होगा
वो घर उतना सजीला होगा

*थैली अर्थव्यवस्था वाला हुआ गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

सरकारी स्कूल खाली पड़े हैं
प्राईवेट बच्चों से भरे पड़े हैं
नैतिक शिक्षा का नाम नहीं है
बस प्रसंटेज की हौड़ लगी है
जो *मातृभाषा* बोलेगा
उसको उपहासित होना पड़ेगा

*हिंगलिश हाँकने लगा अपना गाँव भी*
देखो मॉर्डन हुआ है अपना गाँव भी।

*@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'*

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