सोमवार, 29 जुलाई 2024

गजल




कुछ गुंजाइस बची तो थी नहीं,

सलिए चुप रहा सफाई दी नहीं।


झूट के पुलिंदे नहीं पूरे खुम्ब खड़े थे वहाँ
उनके बीच सच्चाई टिकने की थी नहीं।

उन्नीस का बीस होता आया, मानता हूँ,
पर! दो का बीस होना देखने की थी नहीं।

बोल तो रहे थे सब अपने हिस्से का, लेकिन!
भीड़ में किसी की अपनी आवाज थी नहीं।

अपने बल्द की मार खाया हुआ जो था,
किसी और पर मड़ने पड़ने की थी नहीं।

जज्बात तो फायदे के लग रहे थे अडिग
पर जो बात थी वो कायदे की थी नहीं।

खुम्ब - पुलिंदों से बना बड़ा गठ्ठा/डम्प
बल्द - बैल

@ बलबीर राणा 'अडिग'

5 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

आलोक सिन्हा ने कहा…

सुन्दर

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

शुभा ने कहा…

वाह! सुन्दर सृजन!

Rupa Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना।