कुछ गुंजाइस बची तो थी नहीं,
इसलिए चुप रहा सफाई दी नहीं।
झूट के पुलिंदे नहीं पूरे खुम्ब खड़े थे वहाँ
उनके बीच सच्चाई टिकने की थी नहीं।
उन्नीस का बीस होता आया, मानता हूँ,
पर! दो का बीस होना देखने की थी नहीं।
बोल तो रहे थे सब अपने हिस्से का, लेकिन!
भीड़ में किसी की अपनी आवाज थी नहीं।
अपने बल्द की मार खाया हुआ जो था,
किसी और पर मड़ने पड़ने की थी नहीं।
जज्बात तो फायदे के लग रहे थे अडिग
पर जो बात थी वो कायदे की थी नहीं।
खुम्ब - पुलिंदों से बना बड़ा गठ्ठा/डम्प
बल्द - बैल
@ बलबीर राणा 'अडिग'
5 टिप्पणियां:
सुन्दर
सुन्दर
सुन्दर रचना
वाह! सुन्दर सृजन!
बहुत सुन्दर रचना।
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