गुरुवार, 4 सितंबर 2014

जीवन रेत ही तो है


जीवन रेत ही तो है.....
रेत का भरोसा नहीं
फिसलने का चलन
क्षणिक पद चिह्न
अभी !
अटल अमर पहाड़ दिखता
कल !
और कहीं होता
क्योंकि हवा संग
स्वरुप बदलने की प्रवृति है
बडना बिगड़ना
नित नयीं
मृग तृष्णा
कभी तपिस
कभी ठिठुरन
और मन तू
महल बनाने चला
लेकिन ! जीवन यही है
अडिग यही सच्चाई है।

---: बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित

कोई टिप्पणी नहीं: