किसी को सत्ता चाहिए किसी को मद चाहिए
मेरी हद इतनी है मुझे मेरा वतन सुरक्षित चाहिए।
तथष्ट हूँ क्षितिज पार के बैरी की चिंता न करो
विनती है अपने ही घर में आततायी पैदा न करो।
एक ही कोख से जन्मे थे ये मैं क्षण में भूल जाऊंगा
देश द्रोही उस भाई का कंठ पल भर में घोंट जाऊंगा।
जननी के बिलाप को सहस्र सहन कर जाऊंगा
लेकिन माँ भारती के क्रंदन को नहीं सह पाउँगा।
रचना :- बलबीर राणा 'अडिग'
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