बर्फ जमी जो संशय की पिघलानी होगी,
एक और धारा गंगा की पश्चिम को बहानी होगी।
जिन्न बन चिपका जो बधिरपन
सहन की दीवार हिलानी होगी ।
हर घर सड़क और चौबारे से
मसाल जय भारत की उठानी होगी।
बस में नहीं सफ़ेद धोती काले कृत्य ढोलेरे की
ये लड़ाई हमारी है खुद लड़नी होगी।
ये बात सरद पार जाकर बतानी होगी ।
बाज आ जाओ नापाको छोडो गीदड़ भभकियां
आज एक सुर में आवाज लगानी होगी ।
आवाज लगानी होगी।
@ बलबीर राणा ‘अडिग’
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