काँटों की चुभन, सहना आना होगा
फूलों की सेज, संभलना आना होगा
सुख-दुःख का सारथी हिम्मत
हिम्मत के संग चलना होगा।
अँधेरे में कदम बढ़ाना होगा
उजाले में ठहरके देखना होगा
कुछ नया जरुर दिखेगा पथ पर
उस नयें से कुछ समझना होगा
हिम्मत के संग चलना होगा।
कहीं तपती धूप होगी
कहीं ठिठुरती ठंड मिलेगी
कभी अवरोध बनेगी मूसलाधार
निर्जन सूखे के संग निभाना होगा
हिम्मत के संग चलना होगा।
एक तरफ छूटती ढलान दिखेगी
सामने टोपी गिराती चढ़ाई होगी
सीधे-सुगम में हौंसले टूटते देखे अकसर
जोश-होश बंधुओं को मिलाना होगा
हिम्मत के संग चलना होगा।
कडुवा हितेषी पहचानना मुश्किल
मीठा विद्वेषी समझना मुश्किल
गुप-चुप शांत सुखी की पहचान कठिन होगी
हँसाने वाले दु:खी का हाथ खींचना होगा
हिम्मत के संग चलना होगा।
रचना:- बलबीर राणा ‘अडिग’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें