शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

प्रकृति वैभव


नीला अम्बर आँचल ओढ़े
प्रकृति का यह मंजुल रूप
रात्री चंदा की शीतल छाया
दिवा दिवाकर गुनगुनी धूप

जड़ जंगल  पादपों  का  वैभव
जीवनदायनी सदानिरायें निर्मल
तन हरीतिमा  चिंकुर  प्राणवायु
पय पल्लवित जीव अति दुर्लभ

आँगन सतरंगी कुसुम वाटिकायें
गोद  पशु  विहगों   का  विहार
लहलहाती अनाज की  बालियां
क्षुधा    मिटाता   समग्र   संसार

तेरे इस अनुपम वैभव में भी
दुःखी हो अगर कोई इन्शान
कर्महीन मतिहीन  ही  होगा
जो न समझा   तेरा  विधान ।

@ बलबीर राणा 'अड़िग',

8 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 18 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१८-१०-२०१९ ) को " व्याकुल पथिक की आत्मकथा " (चर्चा अंक- ३४९३ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार आदरणियां यशोधा अग्रवाल जी , अनिता सैनी जी। जरुर कोशिश रहेगी चर्चा मंच पर आने की

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

वाह बहुत शानदार रचना मन मानो प्रकृति संग झूम गया खूबसूरत उपमाओ का प्रयोग किया है आपने.. कविता को पढ़ते वक्त स्वत ही प्रकृति के बीच पहुंच गई ऐसा प्रतीत हो आया..,!!
ऐसे ही आप लिखते रहे इतनी शानदार रचना के लिए आपको बधाई

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
बहुत सुन्दर... लाजवाब....

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक हार्दिक आभार आदरणिया अनीता लागुरी जी, सुधा देवराणी जी, कलम को प्रोत्साहना के लिए धनयवाद

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

आभार मन की वीणा जी