बोलो ढपली वाले कौन हैं तुम
आजाद देश में आजादी
मांगने वाले कौन हो तुम
किसकी तुम ढाल बने हो
किसकी तुम पाल बने हो
हो किसके कवच ओ प्यारो
कौन है अन्दर बतावो यारो
किसके लिए हथियार बने हो
अरे किसके लिए बन रहे हो बम
बोलो ढपली वाले कौन हो तुम
ढूंढो पहचानो उस मदारी को
देश युवावों के जुवारी को
समझो समझाओ उस विचार को
कु बुद्धि विवेक विकार को
फिर टुकडे भारत का करने का
कौन भरा रहा कुकृत्य धम्भ
बोलो ढपली वाले कौन हो तुम
कुतर्क भवनाओं से लूट रहे हैं
किसी बाप के सपने टूट रहे हैं
कैसे जिम्मेवार बनेगा वो भारत का
जिस पर राष्ट्रद्रोही फफोले फूट रहे हैं
कैसी आजादी किसकी आजादी
किसका जाल किसका है भ्रम
बोलो ढपली वाले कौन हो तुम
सिपाही सीमा पर खप रहा है
किसान खेतों में तप रहा है
उद्यमी कर्मों में मगन मूल हैं
व्यापारी व्यापार में मगसूल है
मनुज मनुज धर्म निभा रहा हैं
हर जन कमा के खा रहा है
फ्री खाके उल्टी करने वाले कौन हो तुम
बोलो ढपली वाले कौन हो तुम
नहीं चलेगी तुम्हारी तान
नहीं बजेगा तुम्हारा गान
अखंड भारत है अखंड ही रहेगा
भारत माँ मुकुट यूँ ही सजेगा
न नक्शल रहेगा न जेहादी
गाते है जो भारत बर्बादी
मुठ्ठीभर कुचले जायेंगे नहीं
है गम
बोलो ढपली वाले कौन हो तुम।
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
2 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चार्च आज सोमवार (13-01-2020) को "उड़ने लगीं पतंग" (चर्चा अंक - 3579) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
आभार रविन्द्र जी
एक टिप्पणी भेजें