धरती पर उपजी, धरती पर जायेगी,
निकलेगा समाधान, विधान ये मान तू।
कर्मों में तरुणाई, करनी से कठिनाई,
विज्ञान करे निदान, जान समाधान तू।
लपेटी गयी दुनियां, लिपट गतिमान है,
रपट गया तन्त्र है, रख जरा भान तू।
नहीं छूटा छोटा बड़ा, न छूटे रूप रुतवा ।
उड़ाये बबंडर ने, ना भर उडान तू।
अपनी भी कर कुछ, सब देख सुन रहा,
जानबूझ मत बन, इतना नादान तू।
सब सरकार करे, भरे भी सरकार ही,
हो हल्ला करने वाले, नहीं अनजान तू।
इसके संग चलना, इसके संग फिरना,
निभना पड़ेगा पूरा, बात इसे मान तू।
न रहे भय भ्रमित, ना हीं यूं र्निभीक बन,
बचने वाले रस्तों का, ले जरा सज्ञान तू।
हजार ठोकरें खाके, आशा पर घर लौटा,
क्यों उसे दुत्कार रहा, जान अभिमान तू।
जीवन हो जाता भारी, यूं रोटी का भार बड़े,
मिट्टी खोद कमायेगा, जान स्वाभीमान तू।
यह लड़ाई सबकी, देख सभी मैदानों में,
जीतेंगे मिलकर के, है सभी की जान तू।
लड़ाई बिमारी से है, नहीं किसी बिमार से,
आशा हिम्मत देकर, दे उसे जहान तू।
@ बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’
@ adigshabdonkapehara
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1 टिप्पणी:
सुन्दर सृजन।
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