प्रेमियों से
ज्यादा जिद्दी
धुन के पक्के
इस धरा पर
और किसी को नहीं देखा।
निरा बहरे
दुनियां की चुहल
चिल्लाहट भी
प्रेमगीत सुनाई पड़ता इन्हें ।
प्रेम पल्लवन के लिए
सावन की रिमझिम
चाहते हैं सदैव
तभी तो
धरती का हर कौना
हरा-भरा दिखता है
इन्हें
सावन के अंधे की तरह।
जग्वाळ में बैठे प्रेमी
से जादा
कोई नहीं जानता
पल की गहराई
प्रतीक्षा की लम्बाई
अंतहीन दिशाओं फैलाव
आकाश के नीले का गाड़ापान ।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
2 टिप्पणियां:
वाह
धन्यवाद आदरणीय जोशी ज़ी
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