ये सुदृढ़ सक्षम तात-मात
जिस दिन बूढ़ा जाएंगे,
सब तरफ से असक्षम बन
खुद से खुद में न रह पाएंगे।
पले बड़े जिन बट बृक्षों की छाँव
उन बटों को मत भूलना जी,
अपने यौवन उन्माद में उन्हें
निराश्रय मत होने देना जी ।
संसार में आने पर जैसे
मनुज सहारे पर होता है,
और संसार से जाने को
फिर सहारे पर आता है।
तब तुम अपने सहारों का
सुदृढ़ सहारा बनना जी,
जैसे संभाल तुम्हारी हुई थी
वैसे ही संभाल करना जी।
बाहर से जर्जर, अंदर ढोर
प्रकृति प्रवृत हो जाएंगे,
कपड़े पर टंगा डम्मी सा
मात्र आकृति रह जाएंगे।
तब तुम उन आकृतियों पर
प्रेम से वस्त्र पहनाना जी,
अपने आमोद से दो पल निकाल
उन जरठों से बतियाना जी।
चेहरे पर होंगी झुरियां बलय
आँखें गुफा सी हो जाएंगी,
दाँत मुँह का साथ छोड़ चुके होंगे
गाल गड्डे मात्र रह जाएंगे।
तब तुम उनकी झुरियों बलय से
मैल रेसौं को धोना जी,
सर चेहरे के बिखरे बालों की
साज संवार करना जी।
कान पड़ जायेंगे बंद बहरे
बातें नहीं सुन पायेंगे,
तुम्हारी गपशप चुहल को
अपनी उपेक्षा समझेंगे।
तब तुम उनके पोती-पोतों से
कान में जाकर बुलवाना जी,
उनके अतीत की बातें करके
मन उनका बढ़ाना जी।
बिना बात की बातों पर
जरठ खुद में बड़बड़ायेंगे,
लाख समझाने पर भी
अपनी ही लगायेंगे।
तब तुम थोड़ा धीरज रखकर
उनकी हाँ में हाँ मिलाना जी,
ताव में बृद्ध आमात्यों को
अपशब्द मत कहना जी।
शरीर में रहेगी कमजोरी कंपन
कभी हाथ से बर्तन छूटेगा,
मुँह तक हाथ नहीं जा सकेगा कभी
कोर बाहर ही बिखर जाएगा।
तब तुम अपने हाथ से
कोर मुँह में डालना जी,
प्रकृति नियम दोहराव है यह
तात-मात का तात बनना जी।
मनुज इस संसार में
दो बार अबोध बालक बनता है,
जब वह आता है
और जब जाने को होता है।
सत्य नियम प्रकृति प्रदत्त है
लकड़ी जल कर पीछे आती है,
आज के सत कर्मों की पूँजी
कल व्यर्थ नहीं जाती है।
अगर पुण्य कामना जीवन में
पितृ सेवा जीते जी कर लेना जी,
मरने के बाद रीती रस्मों के
भरोसे बिल्कुल मत रहना जी।
कटु जड़ सत्य, सच्च लिखना
अडिग कलम का कर्म है जी,
तात-मात सेवा से बड़कर
और न कोई सेवा धर्म है जी।
12 अगस्त 2023
✍️✍️✍️@ बलबीर राणा 'अडिग'
ग्वाड़ मटई, बैरासकुण्ड चमोली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें