हुनर के बाजार में हुस्न की कीमत नहीं होती,
कर्मों की फसल कभी गनीमत नहीं होती।
कर्मों की फसल कभी गनीमत नहीं होती।
इश्क की डगर को सीमा से आगे बढ़ाना हो तो,
आगे पीछे देख लेने से फ़जीहत नहीं होती।
बढ़ा दिखने की चाह में गाँव तो छोड़ दोगे,
पर! ससुराल में घरजवैँ की हैसियत नहीं होती।
मातृभूमी के ऋण से उऋण होना आसान नहीं,
क्योंकि माँ के दूध की निर्धारित कीमत नहीं होती।
नशीहत देनी है तो पहले दे देनी चाहिए अडिग,
बिगड़ने के बाद फिर कोई नशीहत नहीं होती।
©® बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
ग्वाड़ (मटई) चमोली
15 फ़रवरी 2024
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