बिना प्रेम श्रृंगार के, नीरस जीवन धाम।
जहाँ प्रेम श्रृंगार हो, वहीं श्री कृष्ण राम।
कर्ता गुमान आए जब, कर्म कांति मलिन होय।
कर्ता में राम भाव हो, कर्म दिव्य जोत होय।।
जिंदगी कट जाएगी, कर्म करो चै विराम।
जग से जाने के बाद, स्वत: पूर्ण आराम।।
योग जतन से जग जुते, फले संजोग फूल।
शोणित चढ़े स्वेद बहे, विपत्ती शूल निर्मूल।
नीरस श्रृंगार विहीन, बिना प्रियसी प्रवास।
अधूरा है गृहस्थ यज्ञ, छवि बिना कैनवास।।
हराम राह अर्जित धन, बन जाता है भाप।
जिस वेग से आता है, उसी वेग से साफ।।
धरती माँ की गोद में, जी नमान के नीड़।
अपने अपने नीड़ को, अडिग हर इक अधीर।।
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
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