लोग वे जाने पहचाने होंगे
लेकिन लगते बेगाने होंगे
खुद की अकड़ में अकड़े
खुद में ही सयाने होंगे।
बहुमेल उन्हें मेल नहीं ख़ाता
एकला अकेले रहना भाता
जब भी करेंगे बातें कुछ तो
मैं मैं उनका नजर आता
महफ़िल होगी चारों तरफ
महफिल बीच वीराने होंगे
लोग वे जाने.....
सब कुछ जानने का भ्रम होगा
नहीं कुछ अलग सा श्रम होगा
करेंगे वही जो सब करते हैं
पर, किन्तु परन्तु का धर्म होगा
मौके मतलब के महाज्ञानी
बाकी के अनजाने होंगे
लोग वे जाने.......
मानुसौं में ये अति मानुष
होते नहीं कभी संतुष्ट
अपनी ही जुगत के जागरुक
बाकी सब तरफ से अपुष्ट
मौके पर छक्के जड़ेंगे
बाकी के अंदरखाने होंगे
लोग वे जाने........
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
2 टिप्पणियां:
सुन्दर
धन्यवाद 🙏🙏
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