बुधवार, 3 सितंबर 2025

भीड़ में कौन अलग नज़र आते हैं ?



भीड़ में कौन अलग नज़र आते हैं ?
जो साधना में खुद को तपाते हैं।

प्रयोजन होते सभी के पृथक, विलग,
पर! पाते वही जो स्वयं को खपाते हैं।

मद, सियासत लोलुपता चीज ही ऐसी,
यहाँ निर्देशक भी राह भटक जाते हैं।

कुठार* भरे पड़े हैं, भ्रष्टाचार से जिनके,
वही भ्रष्टाचार खत्म करेंगे बखाते हैं।

खुद घुटनों तक जल पड़े हैं, भीतर,  
किड़ाण* कहाँ आ रही बाहर चिल्लाते हैं।

लगन की लागत पहचानने वाले 'अडिग'
अगर-मगर वाली डगर नहीं जाते हैं।

*
कुठार - भंडार
किड़ाण - बालों के जलने की गंध

@ बलबीर राणा 'अडिग' 

9 टिप्‍पणियां:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 4 सितंबर 2025 को लिंक की जाएगी है....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

बेनामी ने कहा…

आभार सर 🙏🙏

Onkar Singh 'Vivek' ने कहा…

सुंदर

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर

Shalini kaushik ने कहा…

लगन की लागत पहचानने वाले 'अडिग'
अगर-मगर वाली डगर नहीं जाते हैं।
सुन्दर 👍

Abhilasha ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भाव,उतनी ही सुन्दर रचना

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद सर

बेनामी ने कहा…

आभार महोदया 🙏🙏